अबला / उर्वरा
हुंकार उठी सिंहनी
अब दुर्गा अवतारी है
कितने भी भैरव आ जाये
एक अकेली भारी है !
रणचण्डी जब जाग्रत होती
खण्डन हो या मण्डन हो
खर खप्पर भरे रक्त से
अरि मुन्डो का छेदन हो !
हट्ट हट्ट सुभट्ट भट भट
चिंगारी सी धधके जाये
अबला कहने वाले नर
वीभत्स रूप से थर्राये !
सौम्य रूप स्वीकर करो
या रौद्र रूप को सहन करो
नाहक गाल बजाने वालों
अपना अंतस तैय्यार करो !
विनाशकारिणि भयहारिणि
अब जाग उठी समय भापो
अंकुश स्व स्वभाव पर रख लो
समय रहते तुम जागो !
युग बदला अब तुम भी बदलो
खुले दिल स्वीकार करो
अबला नहीं उर्वरा है ये
जननी है कुछ मान करो !
डा इन्दिरा .✍
स्व रचित
21.12 .2017
Nice
ReplyDeleteनारी का ये दुर्गा रूप हूंकार भरता चेतावनी देता
ReplyDeleteओजपूर्ण रचना ।
सुन्दर रचना.....👌👌👌 निशब्द
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