शबनमी कतरा ...
जज्बाते रंग कुछ बिखर रहे है
एहसासे चिलमन भिगो रहे है
पिघल रही है सिंदूरी वादी
इन वादियों में हम खो रहे है !
सिमटी है सहर मेरे आशियाँ में
गुले गुलज़ार से हम हो गये है
शफ्फाक चादर बिछी हो कोई
खिली चाँदनी से हम हो गये है !
रौशन है हर शै नजारा हसी सा
महकी फिजा आशियाँ खुशनुमा सा
उतर आया चाँद आगोश में मेरे
कतरा हो जैसे कोई शबनमी सा !
डा इन्दिरा .✍
स्व रचित
उतर आया चाँद आगोश में मेरे
ReplyDeleteकतरा हो जैसे कोई शबनमी सा !
बहुत ही सुंदर भाव
वाह बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteववाह वाह मीता क्या कहने बहुत खूब ।
ReplyDeleteसिमटी है सहर मेरे आशियाँ में
ReplyDeleteगुले गुलज़ार से हम हो गये है
शफ्फाक चादर बिछी हो कोई
खिली चाँदनी से हम हो गये है !
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व्व्व्वाह
रौशन है हर शै नजारा हसी सा
ReplyDeleteमहकी फिजा आशियाँ खुशनुमा सा
उतर आया चाँद आगोश में मेरे
कतरा हो जैसे कोई शबनमी सा !!!!!!!
बहुत ही अनुपम अनुरागी बेला का मखमली शब्दांकन !!!!!!!