विजय दशमी ..
कैसे कहूँ शुभ हो दशहरा
अभी तो रावण मरा नहीं
सीता कब आजाद हुई है
ग्रह रावण बन्दी है अभी !
कहाँ राम विजय पाये है
लक्ष्मण मूर्छित अभी वही
संजीवनी बूटी लेकर लौटे
हनुमान भी आये नहीं अभी !
अट्टहास रावण का व्याप्त है
रुदन अभी नभ गूंज रहा
विजय दशमी भ्रमित जाल सा
भ्रम केवल फैला सा रहा !
सतयुग में एक सीता थी
इस युग में घर घर सीता
राम नहीं किसी भी घर में
हरण ना हो तो क्या होता !
आँख का पानी मर गया सब का
हर मन रावण भाव रहे
अग्नि परीक्षा तब तो होगी
सीता पहले जीवित तो रहे !
झूठ का रावण कब जलता है
कब जलता पाखंड
ज्यों काटो त्यों त्यों बढे
वैमनस्य का अहि रावण !
परिवर्तन बिन आये ना दशहरा
ना कुविचार रावण मरता
ना सीता पुनि वापस आती
जब धोबी जैसे हो वक्ता !
शुद्ध विचार और शुद्ध आचरण
गहन मनन और चिंतन हो
सिया साथ राम लौटेगे
मने तभी विजय दशमी हो ! !
डा इन्दिरा गुप्ता
स्व रचित
19 oct 2018
समसामयिक रचना जिसमें चिंतन हमारे बौनेपन पर सटीक प्रहार करता है.
ReplyDeleteयुगों-युगों से जलता आया बुराई का प्रतीक रावण
सर्वव्यापी हो गया और मानवता को
प्रखरता प्रदान करने वाले मूल्य
ख़ाक में मिलते चले गये.
विजय दशमी की शुभकामनाएं.
बहुत ही सटीक और यथार्थ को अभिव्यक्त करती है आपकी रचना 🙏
ReplyDeleteजी प्रिय इंदिरा जी -- बहुत ही सार्थक चिंतन दशहरा पर |
ReplyDeleteअब तो रावण दहन का ये प्रपंच बंद हो
ना रावण गिने जाते हैं
जो हर गली मुह्ह्ल्ले में बिखरे हैं |
सुंदर सार्थक रचना के लिए हार्दिक बधाई आपको | गिरते नैतिक मूल्यों का शोक जरूरी है |
सुन्दर रचना
ReplyDeleteसटीक रचना मीता।
ReplyDeleteबस सीता की भली कही आपने हर एक को सीता सी सहधर्मिणी चाहिए पर राम है कहां ?
और एक पहलू कवि कहता है मै राम बन जाऊँगा मगर जानकी सी अगन में दहो तो सही याने पहले अग्नि परीक्षा! ,या यूं कहो कि दोनो पक्ष दावेदार है उन्हें सीता चाहिए जो नही मिलती
उन्हें राम चाहिए जो होते हैं भला आज के युग में ,
तो बस रावण ही बचा जिसे बार बार मारने का असफल प्रयास करते हैं ,और जो मर नही सकता अंदर तक पैंठा है ।
सागोंपाग तथ्य।
सस्नेह।