शरद ऋतु ...
आई शरद ऋतु इठलाती
शीतल बयार सी पवन बहे
रीते मेघ अठखेली करते
चपल पवन संग होड़ करें !
तारक गण भी नील गगन में
मुक्त भाव विचरण करते
धरा सजी पीली सरसों से
दिनकर जैसा भरम धरे !
ऐसी अद्भुत रूप छटा है
ऋतु राज भी बहक गये
धरा रुकू या गगन समाऊ
भ्रमित भाव मन ठिठक रहे !
पुष्प गुच्छ सब महकन लागे
मादक महुआ पी पवन बहे
कामदेव रति क्रीड़ा करने
अम्बर छोड़ धरा विचरे !
डा इन्दिरा गुप्ता ✍
स्व रचित
बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteशुक्रिया दी
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआभार
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