गिद्ध द्रष्टि ...
गिद्ध द्रष्टि व्याप्त हो गई
हर नर के मन आंगन में
नारी महज भोग्या रह गई
हर कुदृष्टि की नजरों में !
पिता भाई मामा चाचा
रिश्ते आज समाप्त हुए
नर नारी का एक ही रिश्ता
सर्व मान्य सा व्याप्त हुआ !
धरा फटे या नभ टूटे
या आये कयामत दुनियाँ पर
नष्ट भ्रष्ट जीवन हो सारा
नव निर्माण हो धरती पर !
तब शायद कहीं धर्म बचे
शायद नारी पोषित हो
एक अंश भी रह गया पुराना
ये समाज पुनि दूषित हो !
डा इन्दिरा गुप्ता
सवा रचित
हृदयस्पर्शी रचना यही सब हो रहा है। आज कल भोग की लालसा रिश्तों को निगल रही है।
ReplyDeleteसँशिप्त पर गहरी प्रतिक्रिया अतुल्य आभार अनुराधा जी
Deleteसंवेदन शील विषय मर्मस्पर्शी रचना मीता।
ReplyDeleteजला दो इसे फूंक डालों ये दुनिया।
सत्य मीता नये सिरे से फिर उड्भव हो ....शुक्रिया
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