आधी दुनियाँ
कहलाने वाली
छद्म भाव से छली गई !
भावुकता का
दोहन करके
कोमल हिय में सैध करी !
नेह बना
पाँव की बेडी
हाथ रिश्तो से बंधे हुए !
नयन सदा
भीगे ही रहते
घर आंगन बस याद रहे !
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मर्मस्पर्शी रचना
ReplyDeleteआभार
Deleteबहुत ही ह्दयस्पर्शी.. महोदया !👌👌👌
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना
ReplyDeleteशुक्रिया
ReplyDeleteसच्च में बहुत बढ़िया है। चंद पंक्तियों में ही आपने आधी आबादी के भाव को बांध दिया। इसी विषय पर आज मैंने 'साहित्य आजतक' में चर्चा देखा।
ReplyDeleteबहुत खूब गागर में सागर व्यथित नारी का गहन चित्रण।
ReplyDeleteअप्रतिम रचना मीता ।
वाह !!! बहुत खूब
ReplyDeleteशुक्रिया
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