आहट ...
दबी दबी सी आहट होती
थम थम कर रुक जाती है
जैसे कोई धीमे धीमे
सोच सोच कर चलता है !
कुछ बोले या चुप रह जाये
उलझे से जज्बात हुए
कहते कहते रुक जाता है
रुकते रुकते कहता है !
लफ्जों से परहेज हो रहा
खामोशी बतियाये
कभी छुपे कभी सामने आये
कभी नजर ना आये !
कैसी चाह ये कैसा हठ है
कभी लगे मेरा पूरा
कभी खाली हाथ रह गये
कभी नहीं कुछ था मेरा !
ऊहापोह दर पर आ जाऊ
खोलूँ या फिर , फिर जाऊ
आयेगा क्या आने वाला
या केवल इंतजार करू !
डा इन्दिरा गुप्ता
स्व रचित !
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