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शजर ( वृक्ष )

शजर  ( वृक्ष ) ....

नग्न शजर चुपचाप खड़ा है
पात पात कर झरता है
जैसे बच्चे एक एक कर
घर को छोड़ निकलता है !

मनई धरा निर्जला हो गई
कंकरीट से भाव हुए
पुष्प वहां कैसे हो सुरभित
जहाँ पाथर से  जज्बात हुए !

फल फूल देता रहा
जब तक शजर महान
मिलता रहा सभी से उसको
मान और सम्मान !

मान और सम्मान
कछु अब काम ना आये
द्वार पड़ी सुखी टहनियां
नाहक शोर मचाये !

काट छाँट कर परे करो
मिटे एक अभिशाप
बूढ़ा शजर बोला तभी
जलाने के आऊँ काम !

शर्म सार सी कलम है
नैनन रही झुकाय
वृद्ध शजर के घाव को
कैसे वो भर पाये !

डा इन्दिरा गुप्ता ✍

Comments

  1. वाह ..... बहुत सुंदर...बेमिसाल

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  2. वृद्ध शजर तो काट छांट कर जलाने हेतु रख लेते हैं परन्तु वृद्ध मनुष्य...?
    बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना....

    ReplyDelete
  3. आभार लेखन की आत्मा को छुआ आपने

    ReplyDelete
  4. मर्मस्पर्शी !
    दुर्दांत मानवीय करण पेड़ का ।

    ReplyDelete

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