कान्हा का संदेश ...
उद्धव
तुम तो जानो मेरे हिय की
तुम तो मोकू जान गये
सब वैसो ही कहियो उद्धव
जो जो तुमको भान रहे !
इत देखो वसुदेव देवकी
मोकू अपनों जायो कहते
उत सब यशोदा और नंद बाबा कू
मेरो मात पिता कहते !
का सच और का झूठ है
हिय मेरे अचरज भारी
मोहे तो मेरो वृंदावन
लागे मथुरा से भारी !
इते दिन बीते खबर ना लीनी
बाबा को देना ओलमा जाय
गाय चराने जब जाता था
मिलों दूर भागते आये !
एक पल आँख ओट ना करते
आज भेजो पराये धाम
कैसे मान गया हिय उनका
यशोदा मय्या जरा बताय !
अब माखन कौन कू देवे
कौन चुरा कर माखन खाय
कौन ओलमो देतो होगो
माँ तेरे लल्ला उधम मचाय !
एक एक भाव खोल कर कहना
जो मेरे मन में पीर उठाय
सखा तुम हिय की जानन हारे
यासे तोकू देउ पठाय !
कह ना सका वो भी सब कहना
सारों मधुबन यादों में छाये
बाग तडाग पनघट की बतिया
पल पल मोहे बड़ों तरसाये !
सब कहना फिर धीर बंधाना
अधिक दिनन की बात नहीं
पुनि आऊगो में वृंदावन
अधीर ना होवे में हूँ सही !
डा इन्दिरा .✍
स्व रचित
बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteबड़ी सरल भाषा में पौराणिक कथा का
नख - शिख वर्णन...
अति उत्तम.....
अति आभार
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeletethanx
Deleteबहुत ही सुन्दर प्रसंग बाखूबी लिखा है ... अति सुन्दर ...
ReplyDeletethanx
Deleteबहुत सुंदर भाव संयोजन
ReplyDeleteआभार
Deleteवाह अतिउत्तम जैसे कान्हा ने स्वयं पाती लिख भेजी हो बिल्कुल सजीव रचना मन के तार छूती ।
ReplyDeleteअप्रतिम मीता ।
शुक्रिया मीता
Deleteशुक्रिया
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