लोरी 🌾🌾
मेरे दिवा स्वप्न साकार पुत्र के लिये लिखी लोरी जब वो हॉस्टल की पहली रात सो नही पा रहा था ......
तेरे रक्त की लालिमा मेंं
जो धवल कणिकाएँ बहा करती
मातृ दुग्ध के धवल धार की
तुझको याद दिलाया करती
आगे बढ़ छूले दिनकर को
आवाज रक्त मेंं प्लावित होती
उष्ण रक्त की बहती धारा मै
ममता की गर्माहट होती !
धड़कन के हर स्पंदन मै
लोरी की गुन गुन सी होती
सिर्फ दुग्ध ही नही रक्त मेंं
माता स्वयं प्रवाहित होती
मेंं सरितृप्त आत्मा तेरी
तन से विलग नही होती
जरा हृदय मेंं झांक पुत्र तू
तुझमें स्पंदित होती ॥
डॉ इन्दिरा गुप्ता
वाहह... वाह्ह्ह.. लाज़वाब सृजन..👌
ReplyDeleteबहुत ही सराहनीय सृजन आदरणीया
ReplyDeleteलाज़बाब 👌
क्या बात है बहना -- निर्झर सा बहता वात्सल्य और मातृत्व की अद्भुत सांत्वना |
ReplyDeleteधड़कन के हर स्पंदन मै
लोरी की गुन गुन सी होती
सिर्फ दुग्ध ही नही रक्त मेंं
माता स्वयं प्रवाहित होती
मेंं सरितृप्त आत्मा तेरी
तन से विलग नही होती
जरा हृदय मेंं झांक पुत्र तू
तुझमें स्पंदित होती --
भाव विभोर करती रचना के लिए सस्नेह आभार बहना | हॉस्टल में बच्चे के ना सोने की चिंता में माँ का डूबना स्वभाविक है पर इतनी भावपूर्ण रचना हर माँ के भाव हैं | सादर