तेरा शहर ....
रूठने मनाने की
हद से
बाहर
हो गये
अब तो ,
ताबीज मन्नत
और तिजारत
सब बेवफा
हो गये
अब तो ,
ये बेरुखी
ये तिश्नगी
ये बेचारगी
अब और
नही ,
तू नही
तेरा शहर
नही
तेरी
कूचाये खाक
अब कुछ
भी
नही ॥
डॉ इन्दिरा गुप्ता
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन सखी
ReplyDeleteसादर