बिरहन का संताप .... पावस ऋतु का आगमन बिरहन का संताप नित करें शृंगार बावरी साँझ गये बेकार ! साँझ गये बेकार जतन से सज धज बैठी आये ना सखी कन्त और ना पाती भेजी ! टूक टूक हिय है गयो चुभन लागो सिंगार पावस ऋतु शीतल पवन अग्नि सी पजराय ! अग्नि सी पजराय तनि भी चैन ना पाऊ पी पी की पुकार सुन में कुर्जा सी कूर्राउ ! बूँद परे जब तन पर मेरे दूनी प्यास जगाये मेह आओ रटे मयूरा तृष्णा मन की दोहराये ! डा इन्दिरा ✍