भस्म करो या तृप्त करो .... आंखों में भर ओज का रौरव उठ भी जाओ सोते क्यों हो शिवा प्रताप के तुम हो वंशज हैरानी सी बोते क्यों हो ! जिन आंखों में ज्वाला धधके बांह उन्हीँ की रह रह फडके शिवा अंश फिर रक्त बीज बन उष्ण रक्त को बहने दो ! अरि रक्त बहे धरती पर नर मुन्डो का इतिहास रचो त्राही त्राही कर रही धरा तुम सावन बन कर बरसों ! आर्तनाद चहुंओर गूंजता छाती फटती है सुन कर आजाद भगत सुखदेव रूप धर फिर आजाओ धरती पर ! भारत भूमी चीत्कार कर रही भस्म करो या तृप्त करो तिल तिल कर यूं कण कण जलना दारुण दुख से मुक्त करो ! खुल कर श्वास नहीं ले पाती घुट घुट कर ही जीती हूँ अभिशप्त अहिल्या सा तन लेकर नित शाप को ढोती हूँ ! कोई तो राम बनो जग में शापित माँ का उद्धार करो या चक्र सुदर्शन ले नारायण फिर महाभारत आगाज करो ! इस पार या उस पार रहे जीवन त्रिशंकु सा जीवन क्या जीना लड़ो , जीतो , या वीरगति पाओ माँ भारती का हो चौड़ा सीना ! डा इन्दिरा गुप्ता ✍