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Showing posts from August, 2018

एहसास जुदा जुदा

एहसास जुदा जुदा .. आसमां खाली सा है सितारे बात करते है चाँदनी की दहलीज पर क्या आज चाँद उतरा है ! खुदा बनना आसन नहीं यारो तराशे जाने का दर्द सहना पड़ता है ! दिलों दिमाग की यारों होती जंग निराली है दोनों चलते जुदा जुदा किस्मत की चाल निराली है नफरतें शौक ने मरने ना दिया वरना इश्क तो कब से कांधा दिये खड़ा था ! खामोशी कुछ कहती है  सुनने वाला कोई  तो हो जब भी सन्नाटा खटके दर खोलने वाला कोई तो हो बड़े नादाँ है ये आंसू दिल की बातें बोल देते है ! अरमां बेचारे गुमसुम से लब कब  खोल पाते है ! डा इन्दिरा  .✍

क्षणिकाएँ

क्षणिकाएँ ...         .. 🌺 खामोशी में गूंजते लिखे हुए जज्बात पन्ने पन्ने घूमते जुगनू से सम्वाद ! 🌺 सूखे फूल खुली डायरी जले शमा जब  सारी रात सोई यादै जग जाती है कौन सुलाये  उनको जाय ! 🌺 मसि  सुखी अल्फाज मौन है शमा से पिघले जज्बात बात अधूरी रात अधूरी चाँद अधूरा निकला आज ! 🌺 खामोशी का ये आलम है खामोशी से लब सिले हुए खामोशी के हर एक पल में लो बातें होती सारी रात ! डा इन्दिरा .✍

चेतावनी

चेतावनी ... तुम कर रहे हो मानवता का अपमान शायद क्षमा कर दिये जाओ पर ...... उस कोख का अपमान जिससे जन्मती है मानवता स्त्रीत्व का इतना निर्घण अपमान कभी क्षम्य ना होंगे तुम ना तुम से उत्प्रेरित समाज तुम स्वयं जा बैठे हो उस ढहती कगार पर जो दग्ध नारी के हाहाकार से दरक रही है वक्त की पुकार सुनो जाग्रत करो सोये अलसाये भाव जर्जरीत समाज के मेरुदंड बन उसे गर्त में जाने से पहले संभाल लो ! डा इन्दिरा  .✍ स्व रचित 30 अगस्त 1990

बुदबुदा

बुदबुदा ... में ( नारी ) बुदबुदा नहीं हकीकत हूँ ! ख्वाहिश नहीं मुकम्मल हूँ ! विशाल आसमां एक व्यक्ति एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व हूँ ! पूर्ण अस्तित्व सम्वेदना मानवता और आस्था हूँ ! निशब्द निर्घण भाव नहीं सजीव और भवितव्य हूँ ! में बुदबुदा नहीं हकीकत हूँ ! ! डा इन्दिरा .✍ स्व रचित 26 .8 .2018

राखी

राखी .. रा +खी = राखिये शगुन भरा राखिये अनुपम भाई बहन सम्बन्ध ! नेह बंध जो मिला हमें एक कोख एक जन्म ! ऐसा बंधन जो चलता है बिन सोचे जीवन पर्यंत ! दूर पास कोई अर्थ नहीं ये रिश्ता चाक चौबंद ! नेह भाव सतत बहता बन अनुपम सा मधुछंद ! ! डा इंदिरा .✍ स्व रचित 26 . 8 . 2018

बेजान मृग नयनी आंखों को समर्पित

बेजान मृग नयनी आंखों को समर्पित ..🙏🌺 शब्द मौन है आँख नम है लफ्ज नहीं कुछ लिख पाऊ ! मन की पीड़ा आप समझ लो बस बूँद बूँद बहती जाऊ ! जा तन लागे वा तन जाने या जाने माँ की जाई ! पीर उठी हिय चाक हो रहा पर होनी को का कहे भाई !  पर .....☝☝☝ एक राह बन्द होती तो दूजी सौ खुल जाती है कुदरत का तो यही नियम है राहें बनती ही जाती है ! तनि तो धीर रखो सखी मेरी हृदय नयन से तुम निरखो सुगबुगाहट सी द्रग होती नई प्रभाती आने को ! डा इन्दिरा .✍ 25 .8  .2018

आँखें

आँखें ..👀 एक गजब की बात सुनो इस जग  की रीत बताये आँख के अंधे नाम नयन सुख क्या क्या गुण गिनवाये ! पल में तोला पल में माशा दादुर सी कूद लगाये बैठ हिंडोला दूर देश की सैर खूब करि आये ! ना भय्या हम नाम ना लेंगे पांच साल कू आये हाथ जोड़ कर वोट मांगते जीते पर लतियाये ! हमहूं नबीने आँख के अंधे सूरदास हुई जाये ठप्पा लगाते  बिना बिचारे मानो जीवे को कर्ज चुकाये ! बाद मैं भय्या चिल्ल पौ मचती होती   जूतम   पैजारी पीने को पानी पेट को रोटी सब हो जाती भारी ! ओ मिट्टी के माधो सुनलो सुन लो कान लगाय अंधों को सरताज बनाया अंधी पिसे कुत्ता खाय ! कह गये है ज्ञानी ध्यानी कह गये दास कबीरा गुरु चेला जब दोनों अंधे बाकी कछु बचे ना ! का का कहे लेखनी मेरी का का हम बतियाये जो हो जाये सो ही कम है अब मुरारी पार लगाये ! डा इन्दिरा .✍ 25 .8  .2018 स्व रचित

ज़रा अवस्था

ज़रा अवस्था ... ज़रा अवस्था परम पवित्र सी ढेरों अनुभव भरी हुई ज्ञान भरी स्वर्ण गगरिया पर ठोकर मैं धरी भई ! जरा ध्यान से निरखो इसको ये सिर्फ तुम्हारा सुख चाहे चौबीस घंटों में से केवल चाहत के कुछ पल चाहे ! जीवन सारा वार दिया जिन खून के कतरों पर चाहत का अधिकार नहीं उन्हीँ कोख के जायो पर ! आज मुंह फेर रहे हो पर एक दिन ऐसा आयेगा रोने को आंसू ना होंगे मन फूट के रोना चाहेगा ! उसके दर पर देर जरूर है अंधेर नहीं चल पायेगा दर्पण में देखेगा खुद को खुद को ही धिक्कारेगा ! जो निकल गया उसे भुला कर अब आगे की सुध लेले घर बैठे नारायण घट से नेह सुधा छक कर पी ले ! डा इन्दिरा .✍

मानव भया चौपाया

मानव भया चौपाया ... मानव बना चौपाया भाई मानव बना चौपाया दोपयौ की सभ्य संस्कृति सब कुछ है बिसराया ! भाई मानव बना ...... दो पायों सी कहा श्रेष्ठता दिखती अब तो  केवल कटुता शब्दों मैं ज्वाला छाई  है पसरी है हर ओर विकटता कैसा भरम है छाया भाई कैसा भरम है छाया मानव बना चौपाया ...... ज्ञान बुद्धि सब गौण हो गये हम चौपायों के पर्याय हो गये पर हिताय शब्द मौन हो गये स्वार्थ सिद्द सब बोल हो गये कैसा युग है आया भाई कैसा युग है आया मानव बना चौपाया ........ मार काट दो चीर फाड़ दो व्यर्थ विवाद का गगन नाद हो सर्वोपरी अब "में "हो रहा हम का परिलक्षित नहीं विधान हो कैसा दुर्दांत है छाया भाई कैसा दुर्दांत है छाया मानव बना चौपाया भाई मानव बना चौपाया ! डा इन्दिरा .✍ स्व रचित

में में

में में ... चीत्कार मूक प्राणियों का गूंज रहा नभ हो के आर्त कैसे हो फिर गुंजित मुबारकबाद का ये निनाद ! दलदल पर महल नहीं चिनते ना कोहरे से तस्वीर बने आघात दिये ना पूजन हो ना शंख स्वर शमशान बजे ! में में का ये कर्कश सा स्वर आक्रोश स्वर मैं गूंज रहा सोचो समझो तब कर्म करो में स्वयं तुम्हें हर पल  कहता ! डा .इन्दिरा .✍

अहसास

अहसास .. कुछ होश कुछ मदहोशी कुछ अनछुए अहसास पलकों में उतर आये कुछ अनदेखे ख्वाब ! अरमान भी तुम ख्वाहिश भी तुम तुम धड़कन तुम्हीं करार नया रंग है नई अदा है नई शोखी नया अंदाज ! तेरी यादै गुलमोहर सी बिखरा हुआ पराग दरिचौ से झाँक रहा है महका हुआ गुलाब ! हर लम्हा पहलू से गुजरे धीरे से सहलाये आहट की ख्वाहिश सी जागे दस्तक कोई दे जाये ! डा इन्दिरा ..✍ स्व रचित

वीर बहुटी वीरांगना रानी गाईदिनल्यू

वीर बहुटी वीरांगना गाईदिनल्यू ..✊ रानी गाईदिनल्यू का जन्म 26 जनवरी 1915  को मणिपुर के तमेइँगलोंग जिले के तौसेस उपखण्ड के लोँग्काओ गाँव  में हुआ था ! अपने माता पिता की 8 संतानों में से वो 5 वे नम्बर की संतान थी ! उनका परिवार शासक वर्ग से था ! आस पास स्कूल ना होने  की वजह से उनकी औपचारिक शिक्षा नहीं हो पाई थी ! वो अपने चचेरे भाई जादौनाग की विचारधारा और सिदाँतो से बहुत प्रभावित थी ! फलस्वरूप उनकी अंग्रेजों का विरोध  करने वाली सेना में शामिल हो गई !   शामिल होने के मात्र 3 वर्ष बाद ही वो उस छापा मार सेना की सरदार बन गई इसी से उनकी वीरता और बुद्धिमता का पता चलता है ! तब वह मात्र 14 वर्ष की ही थी ! सन 1931 मैं जादौनाग गीरीफ्तार कर लिये गये और उन्हें फांसी देदी गई ! 14 वर्षीय रानी डरी नहीं ना दल को बिखरने दिया वो अपने भाई द्वारा स्थापित दल की आध्यत्मिक और राजनीतिक उतराधिकारी बनी ! उसके बाद उन्होनें अंग्रेजों का खुल कर विरोध किया लोगों को कर ना देने के लिये भड़काया ! स्थानिय लोगों ने उनका खूब समर्थन किया और दल को चंदा भी खूब दिया ! सरकार पहले से ही उनसे चिढ़ती थी अब तो उनके पीछे ही पड गई !

ज्वाला

ज्वाला ..🌋 रोशनाई से बहुत लिख लिया अब अग्नि से लिखती हूँ जलती ज्वाला से भाव जगा दूँ सोये अल्फाज टोकती हूँ ! बूँद बूँद बहे जो लावा ज्वाला मुखी बन जायेगा विस्फोट बन यही एक दिन महाप्रलय ले आयेगा ! शब्दों को यूं व्यर्थ ना समझो महा प्रलय मचा देंगे आसमां में उड़ने वालों को जमी की धूल चटा देंगे ! डा इन्दिरा गुप्ता .✍ स्व रचित सर्व अधिकार सुरक्षित !

जागो भारत भारती

जागो भारत भारती ✊ ध ध धधक उठो भ भ भभक उठो द द  दहक उठो प्र प्र प्रवाल हो उठो माँ पुकारती जागो भारत भारती ..... समूल नष्ट भ्रष्ट हो झूट कपट कष्ट हो द्वार द्वार गली गली अब ना अत्याचार हो सभ्यता पुकारती जागो भारत भारती ...... पाप जल मग्न हो कष्ट भस्मीभूत हो कपट का हनन करो अब ना भ्रष्टचार हो धीर वीर ना रुको जागो भारत भारती .... गर्जना विस्तार हो गुंजित चहुँओर हो जले नहीं कोई चमन गली गली रहे अमन हर हृदय ज्वलंत हो जागो भारत भारती ........ पुरुषार्थ है पुकारता भविष्य तुझे ताकता दसों दिशा दिगंत भी तुझे ही निहारता कर्मणा पुकारती जागो भारत भारती ..... विषय व्यापी आर्य तुम सिंहों की संतान तुम माँ चण्डी के जाये हो कर्म विहीन क्यों सोये हो अंत हो अत्याचार का होते हाहा कार का देखो माँ चीत्कारती जागो भारत भारती ...... नर पिशाच नर मुंड चढाओ माँ ख्प्पर अरी रक्त भराओ जर जर होते अंग वस्त्र को पीताम्बर सा भव्य बनाओ ! माँ देखो तुम्हें निहारती जागो भारत भारती ....... डा इन्दिरा .✍ राजस्थान स्व रचित

वृद्धावस्था

वृद्धावस्था ..✌ समर्थ हो असमर्थ नहीं हो क्या हुआ जो उम्र बढी जरा झांक कर अंदर देखो दृढ़ता अब तक छलक रही ! में अशक्त हूँ क्यों कहना क्यों असमर्थ हूँ सोच रहे क्यों सहारा मांग रहे हो स्वयं विशाल वट वृक्ष भये ! वृद्धावस्था है तजुर्बा एक अटल विश्वास खरा में अशक्त हूँ कमजोर भाव है इससे परहेज रखो सदा ! अशक्त भाव तला सा व्यंजन सदा अपच का काम करें दृढ़ता को शिथिल कर देवे व्यर्थ ही मन संताप भरे ! में समर्थ हूँ भाव यही बस तन , मन , हिय में प्लावित हो साठ का बंदा चालिस हो जाये पक्की बात समझ लीजो ! डा .इन्दिरा .✍ 6  .8. 2018 स्व रचित

मित्र

मित्र ... मित्र शब्द नहीं एक भाव है सतत प्रवाहित सो  हुई जाय जाके हिय में जाय बस गयो वो समपूरन सो हुई जाय ! मित्र एक गणितज्ञ हो सुख जोड़े दुख घटाय गलती हो तो हाथ पकड़ कर हक से रोके आय ! मित्र व्यक्तिगत ना लगे हिय में जाय समाय सिक्के को दो पहलू जैसे सब को देय बुझाय ! डा इन्दिरा  .✍

वीर बहुटी वीरांगना जैतपुर की रानी

वीर बहुटी वीरांगना जैतपुर की रानी ...✊ ईस्ट इंडिया कम्पनी विस्तार वादी नीति का पालन कर रही थी ! लार्ड क्लाइव ने भारत में ब्रितानी राज्य की स्थापना की जिसे लॉर्ड कार्न विलिस और लॉर्ड बेलेजली ने भारत के कोने कोने में फैला दिया ! लॉर्ड डलहौजी ने हड़प नीति को अपनाते हुए झांसी, सतारा आदि राज्यों को कम्पनी साम्राज्य में मिला लिया था ! और बाकी बचे सरदारों और राजाओं के अधिकार भी समाप्त कर दिये !लार्ड एलन वार्डो ने जैतपुर की छोटी सी रियासत जैतपुर को भी तहस नहस कर दिया !        जैतपुर बुंदेल खंड की एक छोटी से रियासत थी कम्पनी सरकार ने 27 नवम्बर सन 1842 ई में जैतपुर पर अधिकार कर उसे ब्रितानिया राज्य में मिला लिया ! उस वक्त जैतपुर पर स्वतंत्रता को वरीयता देने वाले राजा परीक्षित का शासन था ! उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य ब्रितानिया सरकार को भारत की धरती से निकाल फैंकना था ! पर वो कम्पनी सरकार की सेना के समक्ष्य संख्या में कम और कमजोर थे ! अतः बड़ी आसानी से कम्पनी सरकार ने उन पर विजय हासिल कर ली ! ऐसी परिस्तिथि में राजा परीक्षित को जैतपुर छोड़ कर भागना पड़ा ! इधर ब्रिटिश सरकार ने उनके एक समर्थक सामंत