घिर आई बदरिया ...🌱🌿
आज सखी घिर आई बदरिया
पावस ऋतु हरखे पुरवय्या
पात पात हरियायेंगे ऐसे
प्रिय आवन ज्यू मिले खबरिया !
आज सखी ............🐝
गौरैय्या चहुँ फुदकन लागी
गाये मोर बौरायौ पपिहरा
गड़गड़ाय बदरा यूं गरजे
बाजे जैसे झाँज झाँझरिया !
आज सखी .............🐝
त्रसीत धरा बरसे कछु ऐेसे
अमि कलश बिखरे गागरिया
हरख हरख मन भयो रे बावरों
दौउ नयन खंजन दृग भरिया
आज सखी .......🐝
आओ मंगला चार करें सब
चौक पुराओ बाँचो चोघडिया
कुमकुम अक्षत घोलो गेरुआ
पुनि पाहुन बन आई बदरिया
आज सखी ......🐝
डा इन्दिरा ✍
ख़ूबसूरत गीत दीदी, बहुत बढ़िया👌👌👌👏👏👏
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Deleteस्नेहिल आभार भाई अमित जी
🙏🙏🙏🙏पावस ऋतु गीतों का मौसम है ...कलम कैसे रुक पाती अल सुबह से छाई बदरिया हिय मेरा भरमाती !
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 28 जून 2018 को प्रकाशनार्थ 1077 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
अतुल्य आभार ..🙏
Deleteबहुत सुन्दर इंदिरा जी ! इतना सुन्दर स्वागत होगा तो कारी बदरिया तो बरसेगी ही और जब वो बरसेगी तो उसका श्रेय हम आपकी काव्य-फुहारों को देंगे.
ReplyDeleteस्नेहिल आभार ...
Deleteआथित्य दिलकश हो तो मेहमान मेहरबां होता है
फिर ये तो जल वर्षण है जो जीवन को गति देता है !
नमन
वाह!!इंदिरा जी ,बहुत खूबसूरत रचना।
ReplyDeleteस्नेहिल आभार शुभा जी
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteवाह अद्भुत भावों की छटा बिखेरती बहुत ही सुंदर आलंकारिक रचना
ReplyDeleteवाह दीदी जी हमने पढा नही सीधे गा गये
ReplyDeleteमन को छू गयी हर पंक्ती