वीर बहुटी
जालौर की वीरांगना हीरा दे
सम्वत 1363(सन 1311) मंगल वार वैशाख सुदी 5 को दहिया हीरा दे का पति जालौर दुर्ग के गुप्त भेद अल्लाउद्दीन खिलजी को बताने के पारितोषिक स्वरूप मिले धन की गठरी को लेकर बेहद खुश घर को लौट रहा था ! उसे जीवन मैं इतना सारा धन पहली बार मिला था ! सोच रहा था इतना धन देख उसकी पत्नी हीरा दे कितनी खुश होगी !
युद्ध की समाप्ति के बाद इस धन से उसके लिये गहने और महल बनवाउगा और दोनों आराम से जीवन व्यतीत करेंगे !
अल्लाउद्दीन के दरबार मैं उसकी बहुत बड़ी हैसियत समझी जायेगी ! वो उनका खास सूबेदार कहलायेगा ! ऐसी बातैं सोचता हुआ घर पहुंचा ! कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए धन की गठरी पत्नी हीरा दे के हाथों मैं देने हेतु आगे बढ़ा ....
पति के हाथों मैं इतना धन .चेहरे की कुटिल मुस्कान .और खिलजी की युद्ध से निराश हो कर जाती सेना का वापस जालौर की तरफ लौटने की खबर ...हीरा दे को धन कहाँ से और कैसे आया इसका का राज समझते देर नहीं लगी ! आखिर वो भी एक क्षत्राणी थी ! वो समझ गई उसके पति दहिया ने जालौर किले के असुरक्षित हिस्से का राज अल्लाउद्दीन की फौज को बता कर अपने जालौर देश और पालक राजा कन्ड्व देव सौनगरा चौहान के साथ गद्दारी कर ये धन प्राप्त किया है !
उसने तुरंत पति से पूछा ...क्या आपको ये धन अल्लाउद्दीन की सेना को जालौर किले का गुप्त भेद देने के एवज में मिला है ?
दहिया ने कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए खुशी से मुंडी हाँ में हिला स्वीकार कर अपनी गद्दारी और बेशर्मी का सबूत दिया !
दहिया के हाँ कहते ही हीरा दे सकते मैं आ गई बोली आपने अपने देश के साथ विश्वास घात किया .संतान समान प्रजा का पालन करने वाले राजा के साथ गद्दारी की ..हीरा क्रोध मैं भर पति को धिक्कारती हुई दहाड़ उठी ! ....अरे गद्दार आज विपदा के समय दुश्मन को किले की गुप्त जानकारी देकर आपको अपने देश के साथ गद्दारी करते हुए आपको शर्म नहीं आई ! क्या इसी दिन के लिये आपकी माँ ने आपको जन्म दिया था ! उस क्षत्राणी का दूध लजाते हुए आपको जरा भी अफसोस नहीं हुआ ! क्षत्रिय होते हुए क्षत्रिय के स्वामिभक्ति धर्म
को कैसे भूल गये !
दहिया ने हीरा दे को समझा कर शांत करने की बहुत कोशिश की पर हीरा दे एक देश भक्त नारी थी पति के बहकाने फुसलाने मैं कैसे आती ! बात बात मैं बहस बढ़ती जा रही थी !
दहिया की हीरा दे को शांत करने की हर कोशिश बेकार हो रही थी ! बल्कि दहिया की हर कोशिश हीरा दे की गुस्से की अग्नि को भड़काने का काम कर रही थी !
हीरा दे पति की इस गद्दारी से क्रोधित के साथ दुखी भी बहुत थी ! उसे गद्दार की पत्नी कहा जायेगा इससे शर्मिंदगी भी महसूस होने लगी थी !
सोच रही थी युद्ध के बाद उसे एक गद्दार और देश द्रोही की बीवी होने के ताने सुनने पड़ेंगे !
इन्हीं विचारों के साथ किले की गोपनीयता दुश्मन को मिलने के बाद युद्द का क्या परिणाम होगा उसकी कल्पना मात्र से उसका मन दहला रहा था !
हीरा दे को जालौर दुर्ग की रानियाँ और अन्य नारियो द्वारा युद्द हार जाने के बाद अस्तित्व की रक्षा हेतु जौहर की ज्वाला मैं कूदती ललनाओ का द्रश्य स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा ! साथ ही जालौर के रन बाकुरौ द्वारा किये जाने वाले शाके का द्रश्य अंतिम आरती उतारती उनकी सुहागने .अपने रक्त के आखरी कतरे तक लोहा लेते और शहीद होते देश के रणबाँकुरे ! एक एक दृश्य उसकी आंखों के सामने उजागर हो रहे थे !
हीरा दे को .....
एक तरफ जालौर के राष्ट्र भक्त वीर स्वतंत्रता की बलि वेदी पर प्राणों की आहुति देते नजर आ रहे थे ..दूसरी तरफ उसकी आंखों के सामने कुटिलता से मुस्कुराता देश द्रोही पति दहिया दिखाई दे रहा था !
ऐसे दृश्यों की कल्पना कर कर के हीरा दे विचलित हुई जा रही थी ! उन वीभत्स दृश्यों के पीछे हीरा दे को पति की गद्दारी नजर आ रही थी ! इस सब बर्बादी का जिम्मेदार उसका पति ही होगा !
हीरा दे की नजर मैं दहिया द्वारा किये गये अपराध का दण्ड उसे अवश्य मिलना चाहिये था ! उसने स्वयं पति को दण्डित करने का विचार बना लिया ! मन के उठते द्वंद से हीरा दे का शरीर क्रोध और भयंकर परिणाम सोच सोच कर कांप रहा था ! उसने आव देखा ना ताव पास पड़ी तलवार उठाई और पति दहिया का सर एक झटके में कलम कर दिया ! दहिया इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकता था ! सर एक वार से धरा पर आ गिरा !
एक हाथ में तलवार और दूसरे में पति का कटा मस्तक
लेकर वो महल पहुंची ! एक सैनिक के हाथों राजा कान्ड्व देव को पूरी सूचना भिजवाई ! राजा ने इस राष्ट्र भक्त नारी के समक्ष नमन किया ! और मन ही मन उसकी राष्ट्र भक्ति पर गर्व करते हुए निर्णायक युद्ध करने निकल पड़े !
इस तरह वीरांगना देश भक्त हीरा दे देश से गद्दारी और देश द्रोह करने वाले पति को भी दण्ड देने में पीछे नहीं रही !
ऐसे उदाहरण इतिहास में विरले ही मिलते है ! जब पत्नी अपने पति को देश द्रोह के लिये स्वयं अपने हाथों से मौत के घाट उतार दे ! हीरा दे हांडी रानी के बलिदान की की याद दिला गई !
पर ....अफसोस हीरा दे के इतने बड़े त्याग और बलिदान को इतिहास के पन्नों में जगह नहीं मिली !
नमन हीरा दे 🙏
1
हीरा दे साधारण नारी
जालौर देश बाशिंदी थी
देश भक्त थी भारी
निर्धन का जीवन जीती थी !
2
उस काल मैं राजा कान्ड्व
जालौर में शासन करते थे
खिलजी मुगल सुलतान दुष्ट की
आंखों को वो खलते थे !
3
सम्वत 1363 सन 1311
मंगल बार चैत सुदी 5 का
दिवस जब निर्धन दहिया
रात्री को घर में आया !
4
दहिया लाया धन की गठरी
उस दिन जब घर को आया
हीरा दे हैरान हो गई पति
इतना धन कहाँ से पाया !
5
निर्धन था दो वक्त की रोटी
जो दहिया जुटा नहीं पाता
फिर अचानक धन की गठरी
देख हीरा मन चकराया !
6
पहले तो इधर उधर की हाँकी
फिर बात छुपा ना पाया
दुश्मन मुगल खिलजी को
किले का भेद बता आया !
7
इतना धन पगली तूने
जीवन भर ना देखा होगा
सुलतान ने मुझे दिया देख
भाग्य की बदल गई रेखा !
8
हीरा दे सहमी देख रही थी
दाहिर की कुटिल हँसी को
धन के पीछे क्या सच है
जानने आतुर थी हर पल वो !
9
खिलजी की फौज हार रही थी
कूच कर रही थी घर को
यूं अचानक पलट कर
क्यूँ चल पड़ी जालौर देश को ?
10
पल भर मैं समझ गई हीरा
पति ने भीषण कुछ काण्ड किया
कोई भेद दिया देश का
बदले में धन इनाम लिया !
11
महल द्वार एक असुरक्षित
जरूर वही भेद दिया होगा
जालौर के राजा कान्ड्ब देव को
धोखा पति ने दिया होगा !
12
दहिया से पूछा हीरा ने
क्या महल का भेद दिया
अपने उजले माथे पर
विश्वासघात का दाग लिया !
13
कुटिल मुस्कान हँसा दाहिर
और ठहाका लगा दिया
हमको राजा ने दिया ही क्या है
खिलजी ने धनी बना दिया !
14
गरज उठी तब हीरा दे
विकराल भवानी जाग उठी
मन व्याकुलता से भर आया
लालच मैं क्या कर गया पति
15
पिता समान राजा से तुमने
पुत्र होकर गद्दारी की
बुरे वक्त में काम ना आये
उल्टे दुश्मन के लिये अय्यारी की !
16
जिस धरा पे पल कर बड़े हुए
उस धरती पर आघात किया
क्षत्रिय हो कैसे भूल गये तुम
वंश के साथ अपघात किया !
17
दाहिर ज्यू ज्यू समझाता था
हीरा दे भड़की जाती थी
होने वाली आशंका उसको
रह रह कर तड्पाति थी !
18
गद्दार की पत्नी कहने से पहले
में स्वयं क्यूँ ना मर जाऊं
कूद पडू किसी कुएं में
या फांसी का फंद लटक जाऊं !
19
हारता हुआ राजा दिखता
त्राही त्राहि प्रजा चिल्लाती
राजपूतनिया जौहर करती
उसके ख्यालों में आती !
डा इन्दिरा ✍
क्रमशः
हीरा दे सी विरांगणा देश का गौरव है,
ReplyDeleteइतिहास चाहे भुला दे पर वो माटी और वहां का चप्पा चप्पा सदा ऋणी रहेगा उसके त्याग और देश भक्ति का।
बहुत सुंदर रचना।
मूक हो गये हम दीदी जी
ReplyDeleteऐसी देश भक्ती इतना देश प्रेम...धन्य है इस देश की माटी जिसका कण कण वीर विरांगणाओ की वीरता का साक्षी है
धन्य है ये भूमी जिसके प्रेम ये वीर विरांगणा अपना सर कटवा भी सकते हैं और अपनो का सर काट भी सकते हैं
नमन है ऐसी वीरता को ऐसी वीर गाथाओं को और गाथाओं को हम सब तक पहुचाने वाली कलम को
सादर नमन हार्दिक आभार दीदी जी