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शरद ऋतु

शरद ऋतु ....

शीत काल की हुई विदाई
शरद ऋतु इठलाती आई
पवन बहे चंचल अति भारी
फुनगी-फुनगी ,डारी-डारी !

रीते मेघ खेलते फिरते
ना -ना प्रकार , रूप वो धरते
भूल गई हो शीत चुनरिया
ओढ़ उसे मन मानी करते !

धरा सजी पीली सरसो से
रूप लावण्य भरी वो दमके
दिनकर लख कर रुक जाये
ऋतु राज भी बहके जाये !

धरा रुकु या गगन समाऊ
या अम्बर धरती ले आऊ
रति , मदन से कहे बिहँस कर
स्वर्ग से बेहतर यही बस जाऊ !

शीत काल की हुई विदाई
शरद ऋतु इठलाती आई !

डॉ इन्दिरा गुप्ता


Comments

  1. डॉ इन्दिरा जी ।
    क्या सुन्दर वर्णन है ।

    ReplyDelete
  2. नमस्ते,

    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरुवार 28 फरवरी 2019 को प्रकाशनार्थ 1322 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।

    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर
    सादर

    ReplyDelete
  4. मनोहारी वर्णन...
    रति , मदन से कहे बिहँस कर
    स्वर्ग से बेहतर यही बस जाऊ !
    वाह!!!

    ReplyDelete
  5. बहुत सुंदर वर्णन रचना मीता सुंदर सरस सुघड़।

    ReplyDelete
    Replies
    1. नमन ...आभार
      मीता कहने वाले का नाम जान सकती हूँ ?

      Delete

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