दस्तकें आहट से वो कुछ 
इस कदर झुंझला गया 
कौन है किसने किसी को 
मेरा पता बता दिया ! 
चैन से सोये हुए थे 
तन्हाई की चादर तान कर 
बेवक्त सन्नाटे मैं किसने 
शोर सा बरपा दिया ! 
वो नहीं उनकी थी यादै 
लिपट कर सोई हुई 
यहां भी सताने आ गये 
रूहें चैन  गंवा दिया ! 
जिये किस मानिंद अब तो 
तन्हाई भी चिढ़ाने सी लगी ! 
खयाल,ख्वाब ,ख्वाहिशों पर 
तीशा किसने चला दिया ! 
राहतें तलब अब कहाँ पुरसुकूं 
"इन्दिरा  "जीना है गुनाह 
इश्किया चौसर पे समझो 
हमने दाँव  लगा दिया ! 
डा इन्दिरा  ✍
 
वाह...
ReplyDeleteबेहतरीन,,,,
सादर
शुक्रिया यशोदा जी अति आभार
Deleteइश्किया चौसर पे समझो
ReplyDeleteहमने दाव लगा दिया. बहुत खूब. बेहतरीन
अति आभार सुधा जी
Deleteआपकी सराहना काव्य का सार्थक होना ! धन्यवाद
क्या बात क्या बात मीता।
ReplyDeleteनज्में तन्हाई पर जैसे तीर चला दिया।
खूबसूरत बेहतरीन
आपको तो क्या कहूँ मीता बस सहज अनुराग !आभार
Deleteतन्हाई मैं आहट अक्सर तीर की तरह हलगती है देर तलक आहट की खनक कानों मैं ही चुभती है
इश्किया चौसर पे समझो
ReplyDeleteहमने दाँव लगा दिया !--------
वाह !!!!!बहुत खूब प्रिय इंदिरा जी | तन्हाई में ये इश्किया चौसर बड़ा अनोखा है | सुंदर रचना !!!!!!!!! सस्नेह --------
अतुल्य आभार स्नेहिल रेनू जी काव्य आत्मा को खूब पकड़ा आपने 👍👍👍👍👍
ReplyDeleteतन्हाई और इश्किया चौसर
बड़ी सटीक सी बात
एक ही खेले एक बिछाये
अपने सब जज्बात !
अतुल्य आभार स्नेहिल रेनू जी काव्य आत्मा को खूब पकड़ा आपने .
ReplyDeleteतन्हाई और इश्किया चौसर
की जब बिछी बिसात
इश्क ही खेले इश्क बिछाये
अपने सब जज्बात !
बहुत ख़ूब ... दिलकश रचना 👌👌👌
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २ अप्रैल २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
वाह!!लाजवाब।
ReplyDeleteवाह दीदी लाजवाब है आपकी ये तनहाई
ReplyDeleteउम्दा 👌
वो नहीं उनकी थी यादै
ReplyDeleteलिपट कर सोई हुई
यहां भी सताने आ गये
तन्हाई में यादें ही तो साथ होती हैं
बेहतरीन ....शानदार.... लाजवाब....
वाह!!!