Skip to main content

वीरांगना रानी द्रौपदी

वीरांगना रानी द्रौपदी ✊
धार क्षेत्र की क्राँति की सूत्र धार !

क्रमशः
11
अंग्रेजों ने चाल चली
अवयस्क आनंद राव को मान्यता दी
सोचा एहसान तले दबेगी  रानी
विद्रोह नहीं कर पायेगी !
12
पर रानी ने अमझेरा राज्य की
सेना को साथ मिलाया
सरदार पुर पर किया आक्रमण
अंग्रेजों को मार भगाया !
13
भीम राव रानी के  बड़े भाई 
क्रांति वीर स्वाभिमानी
साथ सदा रानी का देते
क्रांति की मशाल सदा थामी !
14
31 अगस्त क्रांति कारियों को
सुद्र्ड किला सुपुर्द किया
रानी द्रौपदी ने  पूर्ण समर्पित 
क्रांति कारियों का साथ दिया !
15
अंग्रेज कर्नल भड़क गये
रानी की मन मनानी से
वो रानी की बात मानते पर
रानी डरती नहीं थी उनसे !
16.
फिर भी उनको भय था भारी
रानी बड़ी साहसी है
मध्य भारत मैं क्रांति भाव की
वो ही प्रसार अधिकारी थे !
17
रानी  की क्रांति प्रेरणा पाकर
मध्य काल मैं धार मैं विद्रोह हुआ
जिसका डर था अंग्रेजों को
वही  कार्य समपन्न हुआ !
18
नाना साहब भी आस पास
रानी को समर्थन देते थे
द्रौपदी के शौर्य की सदा
भूरि प्रशंसा करते थे !
19 
नेता गुलफाम बादशाह खांन
सआदत खांन , स्वयं रानी
अँँग्रेजो की डाक लूटकर
घरों ने आलगा देते !
20
22अक्टूबर सन 1857 मैं
धार किले को जा घेरा !
30 फीट ऊंची किला
लाल पत्थर का बना हुआ !
21.
24  से 30 अक्टूबर तक
जम कर संघर्ष चला भार
किले मैं दरार पद गई
अंग्रेज सेना घुस गई सारी !
22
नहीं पकड़ पाई रानी को
किले को फ़िर ध्वस्त किया .
राम चंद्र को दीवान बना
राज्य अपने आधीन की !
23
कर्नल ड्युलेक बड़ा क्रोधि था
रानी से भयानक चिढ़ता था
एक आँख ना भांति रानी
मन ही मन उससे जलता था !
24
पर हाथ ना आया कोई भी
सब गुप्त द्वार से निकल गये
खाली किला मिला कर्नल को
सर धुनता अफसोस करें !
25
इस तरह रानी ने धार क्षेत्र मैं
भारी धूम मचाई थी
अंग्रेजों के नाक मैं दम था !
नारी थी या चिंगारी थी !
26
जीवन पर्यंत विद्रोह किया
अंग्रेजों की हुकूमत का
क्रांति की ज्वाला धार  क्षेत्र में
रानी के नाम रही सदा !
27
उनके जीवन और मृत्य के बारे मैं
अधिक नहीं जानकारी है
ऐसे वीर कहाँ मरते है
आज भी याद वो नारी है !

डा इन्दिरा  ✍



















!

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

वीरांगना सूजा कँवर राजपुरोहित मारवाड़ की लक्ष्मी बाई

वीर बहुटी वीरांगना सूजा कँवर राज पुरोहित मारवाड़ की लक्ष्मी बाई ..✊ सन 1857 ----1902  काल जीवन पथ था सूजा कँवर  राज पुरोहित का ! मारवाड़ की ऐसी वीरांगना जिसने 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम मैं मर्दाने भेष में हाथ मैं तलवार और बन्दूक लिये लाड्नू (राजस्थान ) में अंग्रेजों से लोहा लिया और वहाँ से मार भगाया ! 1857 से शुरू होकर 1947 तक चला आजादी का सतत आंदोलन ! तब पूर्ण हुआ जब 15 अगस्त 1947 को देश परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त हुआ ! इस लम्बे आंदोलन में राजस्थान के योगदान पर इतिहास के पन्नों मैं कोई विशेष  चर्चा नहीं है ! आजादी के इतने  वर्ष बीत जाने के बाद भी राजस्थानी  वीरांगनाओं का  नाम और योगदान कहीं  रेखांकित नहीं किया गया है ! 1857 की क्रांतिकी एक महान हस्ती रानी लक्ष्मी बाई को पूरा विश्व जानता है ! पर सम कालीन एक साधारण से परिवार की महिला ने वही शौर्य दिखलाया और उसे कोई नहीं जानता ! लाड्नू  में वो मारवाड़ की लक्ष्मी बाई के नाम से जानी और पहचानी जाती है ! सूजा कँवर का जन्म 1837 के आस पास तत्कालीन मारवाड़ राज्य के लाडनू ठिकाने नागौर जिले ( वर्तमान मैं लाडनू शहर )में एक उच्च आद

वीरांगना रानी द्रौपदी

वीरांगना रानी द्रौपदी धार क्षेत्र क्राँति की सूत्रधार .! रानी द्रौपदी निसंदेह ही एक प्रसिद्ध वीरांगना हुई है जिनके बारे मैं लोगों को बहुत कम जानकारी है ! छोटी से रियासत की रानी द्रौपदी बाई ने अपने कामों ये सिद्द कर दिया की भारतीय ललनाओ मैं भी रणचण्डी और दुर्गा का रक्त प्रवाहित है ! धार मध्य भारत का एक छोटा सा राज्य जहां के  निसंतान  राजा ने  देहांत के एकदिन पहले ही अवयस्क छोटे  भाई को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया 22 मैं 1857 को राजा का देहांत हो गया ! रानी द्रौपदी ने राज भार सँभला ! रानी द्रौपदी के मन मैं क्राँति की ज्वाला धधक रही थी रानी के राज संभालते ही क्राँति की लहर द्रुत गति से बह निकली ! रानी ने रामचंद्र बाबू को अपना दीवान नियुक्त किया वो जीवन भर रानी के समर्थक रहे ! सन 1857 मैं रानी ने ब्रितानिया का विरोध कर रहे क्रांतिकारीयों  को पूर्ण सहयोग दिया सेना मैं वेतन पर अरब और अफगानी सैनिक नियुक्त किये जो अंग्रेजों को पसंद नहीं आया ! अंग्रेज रानी द्रौपदी की वीरता और साहस को जानते थे सम उनका खुल कर विरोध नहीं करते थे ! और रानी कभी अंग्रेजो से भयभीत नहीं हुई उनके खिलाफ क्रँतिक

वीर बहुटी जालौर की वीरांगना हीरा दे

वीर बहुटी जालौर की वीरांगना हीरा दे सम्वत 1363(सन 1311) मंगल वार  वैशाख सुदी 5 को दहिया हीरा दे का पति जालौर दुर्ग के गुप्त भेद अल्लाउद्दीन खिलजी को बताने के पारितोषिक  स्वरूप मिले धन की गठरी को लेकर बेहद खुश घर को लौट रहा था ! उसे जीवन मैं इतना सारा धन पहली बार मिला था ! सोच रहा था इतना धन देख उसकी पत्नी हीरा दे कितनी खुश होगी ! युद्ध की समाप्ति के बाद इस धन से उसके लिये गहने और महल बनवाउगा और दोनों आराम से जीवन व्यतीत करेंगे ! अल्लाउद्दीन के दरबार मैं उसकी बहुत बड़ी हैसियत  समझी  जायेगी ! वो उनका खास सूबेदार कहलायेगा ! ऐसी बातैं सोचता हुआ घर पहुंचा ! कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए धन की गठरी पत्नी हीरा दे के हाथों मैं देने हेतु आगे बढ़ा .... पति के हाथों मैं इतना धन .चेहरे की कुटिल मुस्कान .और खिलजी की युद्ध से निराश हो कर जाती सेना का वापस जालौर की तरफ लौटने की खबर ...हीरा दे को धन कहाँ से और कैसे आया इसका का राज  समझते देर नहीं लगी ! आखिर वो भी एक क्षत्राणी थी ! वो समझ गई उसके पति दहिया ने जालौर किले के असुरक्षित हिस्से का राज अल्लाउद्दीन की फौज को बता कर अपने जालौर देश और पालक राजा