तूलिका देखो काव्य रस मई
हिय मधु छंद भाव बोले
प्रकृति अपने परिपूर्ण रूप में
धरा विहंगम में डोले !
नव यौवन की पराकाष्ठा
दुई नयन भर रहे कजरारे
नव पल्लव जब ले अंगड़ाई
नव प्रभात भूतल डोले !
श्वेत शुभ्र वसन शांत मन
पावनता जग सर्साये
धर अद्भुत शृंगार प्रकृति
हिय देवन को भरमाये !
डा इन्दिरा ✍
अति आभार आपकी उत्तम शब्दों से सुसज्जित प्रतिक्रिया लेखन मनोबल को उत्साहित कर गई bro शुक्रिया
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत....खूबसूरत शब्दों से सजी लाजवाब रचना।
ReplyDeleteअतुलित आभार सखी नीतू जी
Deleteवाह मृदुल मंजुल भावाभिव्यक्ति प्रकृति के सरस सौंदर्य का सांगोपांग चित्रण।
ReplyDeleteमीता प्रकृति आपका स्नेहिल विषय है ! आपका पढ़ कर झूमना लाजमी था ..आपकी मृदुल प्रतिक्रिया ने सत्य ही काव्य को सार्थक कर दिया !
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