परिवर्तन 🍃
प्रवृति और प्रकृति मैं
परिवर्तन करना होगा
तृण तृण होते पर्यावरण को
पुनः नवीन रंग देना होगा !
क्षीर सिन्धु मैं क्षीर नहीं है
नीर सिंधु मैं नीर
हृदय गगरिया तड़क गई
कब तक पीर धरे अब धीर !
उठो भर्तृहरि या भागीरथ
बनना ही होगा तुमको
चीर हरण की बात ना केवल
पीर हरण करना तुमको !
स्व जागे सब सम्भव होगा
जग जागे ना होय
हुँकार भरो अँगड़ाई छोड़ो
बस कर्म करें गति होय !
डा इन्दिरा ✍
Bahut sundar rachna
ReplyDeleteअति आभार अपर्णा जी 🙏
Deleteअतुल्य आभार अमित जी आपकी प्रतिक्रिया उत्साह वर्धक और
ReplyDeleteलेखन को प्रवाह देने मैं सक्षम
धन्यवाद 🙏
वाह!!! बहुत खूब बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeletethanx
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteshukriya
Deleteवाह बहुत सुंदर रचना
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