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जर्रा जर्रा

जर्रा जर्रा

जर्रा जर्रा जरा जरा
है आंसुओं से भीगा हुआ
जरा संभल कर छूना इसको
है अंदर तक भरा भरा  !

जो  जितना ज्यादा मुस्काता
खुशफहमी का गुमां कराता
गहऋ नजर जरा डाली तो
भीगा है वो जर्रा जर्रा !

वादे सबा तो छू कर चलदी
कुछ लेकर कुछ दे कर चल दी
यादों का गमगीन पिटारा
था आंसुओं से भरा भरा !

जीवन क्या पानी का बुलबुला
अभी उठा अभी फूटा
रिमझिम फुहार ना भीगा
भीगा तो बस जरा जरा !

डा इन्दिरा  ✍

Comments

  1. बहुत खूबसूरत रचना।
    अच्छा शब्द चयन ,भाव भी लाजवाब है ।

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 08 मई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  3. वाह!!सुंंदर रचना!

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  4. जीवन क्या पानी का बुलबुला
    अभी उठा अभी फूटा
    रिमझिम फुहार ना भीगा
    भीगा तो बस जरा जरा !-----
    बहुत ही संजीदगी से मन की पीड़ा को शब्द देती रचना प्रिय इंदिरा जी | सस्नेह --

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  5. वाह सुंदर सटीक रचना

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