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जिंदगी का फलसफा

जिंदगी का फलसफा ...

जिंदगी का फलसफा
बस दो लफ्जों मैं  कैद रहा
एक तो फर्ज निभाने मैं
दूजा कर्ज चुकाने मैं !
इन दो लफ्जों के किस्से मैं
जाने कितने हिस्से है
कुछ बाँट दिये कुछ बट गये
बाकी  खैरात मैं चले गये !
अपना कौन सा हिस्सा था
जो अब तक हाथ नहीं आया
कब कहाँ कैसे छूट गया
जो अब तक याद  नहीं आया !
खाली दामन खाली है मन
खाली खाली सा अब है तन 
खाली खाली से इस पन मैं
अब ..कौन भला कब ....कौन आया !

डा इन्दिरा  ✍

Comments

  1. वाह. बेहतरीन.. सुंदर रचना
    बस दो लफ्जों मैं  कैद रहा.

    ReplyDelete
  2. एहसास और संवेदनाओं से सिंचित रचना ।
    उम्दा

    ReplyDelete
  3. बहुत लाजवाब।
    आप कुछ भी लिखे वो कमाल ही होता है।

    ReplyDelete

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