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नव वधू

नव वधू ...अस्तित्व

नव वधू है
कांटे .गुलाब कलियां
सब बटोर कर
आंगन बुहार देगी !
प्रश्न यही है ....
आंगन की माटी क्या उसको
उगने की जगह देगी !
दीपक की जलती लौ
या छत पर लटका पंखा
पीछे नोहरे का गहरा कुआं
या माचिस की अग्नि रेखा
क्या सब ....
सहज भाव स्वीकार करेंगे ..
या दुश्मनी मान
भस्मीभूत करेंगे ? ? ?
नव वधू का अस्तित्व
स्वीकार कर  .....
क्या उसका मान  करेंगे !
प्रश्न वही है
यही कहीं है !

डा इन्दिरा ✍

Comments

  1. सिसकती मांग समय की ।
    बेहतरीन।

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  2. आशीर्वाद bro..
    🙏 काम पहले लेखन तो खाली समय का शगल है !
    आप जिस कार्य के लिये अवकाश ले रहे है वो पूर्ण और सफल हो ! .आपकी अनुपस्तीथी आपका लेखन दोनों शीघ्र दूर होगी ऐसा विश्वास रखती हूँ !
    शुभ दिवस

    ReplyDelete
  3. आपका बहुत बहुत आभार bro अमित जी
    लेखन की आत्मा तक उतरे और उसे महसूस किया लेखन सार्थकता की और अग्रसर हुआ !
    ऐसे ही और ह्रदय महसूस करें और बदलाव का आव्हान हो .कोई एक नोहरा या माचिस की तीली ..भी बदल जायेगी
    मेरे इस लेखन भाव को पूर्णता मिल जायेगी ! 🙏

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  4. वाह दीदी जी
    बेहद उम्दा

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