पुत्र गर्विता माँ 💕
मेरे मन की शर शय्या पर 
भीष्म प्रतिज्ञा जैसा तू 
यक्ष प्रश्न सब हल कर रहा 
धर्म युधिष्ठर जैसा तू ! 
मेरे स्वपन गंग  को तू  ही 
खींच धरा पर ले आया 
अतृप्त मातृ मन को तूने 
अमि कलश घट पिलवाया ! 
घूंट घूंट तृप्ति की मेरी 
तुझसे ही बस शाँत हुई 
आत्म तुष्टि सी में निमग्न सी 
परिभाषित सी मात हुई ! 
हर जन्म तू मेरा अंश हो 
तू ही उर्वर बीज बने 
तुझको ही कोख उपजाऊ 
तुझमें मेरा सर्वस्व ढले ! 
डा इन्दिरा ✍
(अपने पुत्र मनु को समर्पित )
 
 
स्वयं के अंगजात को संसार की सबसे सुंदर रचना देखती है माँ और सबसे उत्कृष्ट स्थान पर देखना चाहती है और जब तक मां की छत्रछाया मे होता बच्चा, मां भरसक प्रयत्न करती है कि उसे हर संकट से बचाये हर सुख दे और अपना पुरा वात्सल्य लुटा देती है।
ReplyDeleteमीता बहुत भाव पूर्ण रचना।
आपका गर्वित भाल सदा ऊंचा रहे ।
माँ पुनि पुनि भर गई मोद हृदय ना समाय ...मात बल्लय्या सा हुआ मीता आपका भाव !
Deleteनमन
वातसल्य भाव से परिपूर्ण माँ की गर्वित भरी रचना..
ReplyDeleteबहुत बढियां..।
शुक्रिया पम्मी जी ...इन्दिरा तो केवल सम्बोधन है हर माता का ये ये दिवा स्वप्न है ! मन बीती नहीं जग बीती कहती हर मय्या का सुत नंदन हें !
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