कान्हा की ढिटाई ...
आज भयो अचरज बड़ों भारी
आगे कान्हा पीछे महतारी
लटपटाय के कान्हा भागे
तन पर एकऊ वसन ना प्यारी !
पग पैजनिया रुनक झुनक सी
पीछे मय्या धुनक धुनक सी
संटी लिये हाथ में भारी
का कर दिनों आज मुरारी !
घबराये से कान्हा लट पट
भागे जात है सरपट सरपट
कमर करधनी कसी हुई है
छूट गई कछनी पीताम्बरी !
पाय उपाय झगला नहीं तन पे
दधि मुख लेप ना माखन प्यारी
बंसी की भी सुध नहीं माधो
ऐसी का हुई बतिया न्यारी !
अति रिसियाई माय दीख रही
कबहूँ ना ऐसी रार मचाई
आज जरूर गजब ही कीन्हो
तबही हो रही ये गति न्यारी !
तबही खबर ये पड़ी सुनाई
काहे मय्या इतनी रिसियाई
हँसत हँसत पेट पिरा गयो
कान्हा भी का बात उठाई !
पतों चलो है कृष्ण कन्हाई
ब्याह करन को मचले भाई
तोसे बाबा ने ब्याह कियो है
तासे तू संग रहवे आई !
मेरो भी माँ ब्याह करा दे
राधे गुजरिया तोसी लागे
वृष भान बाबा के मित्र है
मान जायेंगे बात चला दे !
सुन मय्या पहले मुस्काई
राधे जैसी चहिये लुगाई
सुनत हाँ फिर संटी लीनी
देखो तो कान्हा की ढीटाई !
कछु रिसियाई कछु मुस्काई
मात मोद भर दीन्हो कन्हाई
देखत सुनत "इन्दिरा "मन मुलके
कान्हा की ये बाल चतुराई ! !
डा इन्दिरा ✍
लालित्य से भरपूर कविता, कान्हा के सौंदर्य के सुर से सुर मिलाती।
ReplyDeleteअतुल्य आभार विश्व मोहन जी कान्हा की बाल लीला का लालित्य .मुझे सदा लुभाता है ..jsk
Deleteवाह सुंदर मीता!
ReplyDeleteमैया कर दे मोरो ब्याव
मंगवादे दुल्हन राधे सी
एक आध तूं छड़ी मार ले
पर अब दुल्हन बस लादे
वृषभान सुता रुप अनुपम
उन संग ब्याव रचादे।
शुक्रिया मीता सही कहा ...
Deleteराधे सी दुल्हन के खातिर मचल रहे गिरधारी
हंस बोल सब ताली देवे
कान्हा की लीला अति न्यारी !