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गणित सही नहीं

गणित सही नहीं ...+  - %

में तो यायावर सा हूँ
मेरी बात जरा सुनना
बनजारे के एकतारे सा
सहज भाव हृदय रखूं !
छल कपट आचार विचार
सभी व्यर्थ मेरे कृत में
एक पहेली बना  खड़ा हूँ
जीवन के झंझावातौ  में !
कहाँ कब कैसे आया में
क्या इस बात का जिक्र करूं
कैसे आगे जीवन जियूँ
इसी बात की फिक्र करूं !
सर पर हाथ ना छाया कोई
ना उंगली कोई थामे
में सरमाया स्वयं हूँ अपना
जीता हूँ बस गिर पड़  के !
आधा पेट मिले जो खाना
शत शत बार नमन करूं
नहीं मिले जो खाना मुझको
पानी पी कर सबर करूं !
नहीं किसी से बैर प्रभु है
ना ही दोस्ती में मांगू
एक बार अनाथ बनों प्रभु
इतना भर ही मैं चाहूँ !
दो पल ......
दो पल झेल नहीं पाओगे
नाथ मेरे अवसादों को
मैं अब तक डटा खड़ा हूँ
तुम भागोगे निज धाम को !
हे त्रिलोकी नाथ तुम्हारी
जोड़ भाग कुछ कच्ची  है
गणित सही से नहीं किया
बस यही थोड़ी सी गलती है !
थोड़ा जोड़ा बहुत घटाया
भाग किया सब कुछ बांटा
मुझ अनाथ के भाग्य मैं भी
क्यूँ रहा रिश्तों का घाटा !
आओ कान्हा तुम्हीं भार लो
अब सारी रिश्ते दारी का
गुरु .पितु  .मात सखा सब बनना
मुझ अनाथ से प्राणी का !
अर्पण तर्पण .पूजन अर्चना
क्या क्या करते सब आडम्बर
मेरे पास केवल भाव है
स्वीकार करो आगे बढ़  कर !

डा इन्दिरा  ✍



Comments

  1. "नहीं किसी से बैर प्रभु है
    ना ही दोस्ती में मांगू
    एक बार अनाथ बनों प्रभु
    इतना भर ही मैं चाहूँ ! "

    "आओ कान्हा तुम्हीं भार लो
    अब सारी रिश्ते दारी का
    गुरु .पितु .मात सखा सब बनना
    मुझ अनाथ से प्राणी का ! "

    "अर्पण तर्पण .पूजन अर्चना
    क्या क्या करते सब आडम्बर
    मेरे पास केवल भाव है
    स्वीकार करो आगे बढ़ कर !"

    उफ्फ गहन पीड़ा
    भावों की सुंदर अभिव्यक्ती
    प्रभू से शिकवा भी और नाता भी वाह
    भाव विभोर करती रचना
    दिल को झक्झोर गायी

    बनके मूक बधीर मुरलीधर
    मूरत में बस बैठे हैं
    देखकर सारे खेल तमाशे
    जाने क्यू चुप्पी साधे हैं
    जग नीर नयन से चरण पखारे
    वो मुस्काए बस रह जाते हैं

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