Skip to main content

अग्नि शिखा अवतरण

अग्नि शिखा अवतरण ...

अग्नि शिखा अवतरित बाला
दहक रही बन कर ज्वाला
नस नस में दह्के चिंगारी
जहर भरी मानो हाला !
सदियों से जलती आई हूँ
अग्नि परीक्षा देती 
अग्नि शिखा स्वयं बन आई
अब तुम्हें निमंत्रण देती !
आओ छूओ अभिशप्त करो तुम
स्वयं आव्हान करती हूँ
धूत खेलों अब मेरे संग
खुद में ही  दाव  लगाती हूँ !
लाक्षा ग्रह की में ज्वाला हूँ
दावानल की चिंगारी
सुरसा जैसी प्रचंडता लेकर
उतरी हूँ बन अवतारी !
नाही मैं केवल उर्वरा
ना केवल सम्वेदन हूँ
उल्का पिण्ड सी जलु निरंतर
छू लो तो सब भस्म करूं !

डा इन्दिरा  ✍

Comments

  1. वाह दीदी जी लयबद्ध लाजवाब रचना

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

वीरांगना सूजा कँवर राजपुरोहित मारवाड़ की लक्ष्मी बाई

वीर बहुटी वीरांगना सूजा कँवर राज पुरोहित मारवाड़ की लक्ष्मी बाई ..✊ सन 1857 ----1902  काल जीवन पथ था सूजा कँवर  राज पुरोहित का ! मारवाड़ की ऐसी वीरांगना जिसने 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्र...

वीर बहुटी जालौर की वीरांगना हीरा दे

वीर बहुटी जालौर की वीरांगना हीरा दे सम्वत 1363(सन 1311) मंगल वार  वैशाख सुदी 5 को दहिया हीरा दे का पति जालौर दुर्ग के गुप्त भेद अल्लाउद्दीन खिलजी को बताने के पारितोषिक  स्वरूप मिले ...

वीरांगना रानी द्रौपदी

वीरांगना रानी द्रौपदी धार क्षेत्र क्राँति की सूत्रधार .! रानी द्रौपदी निसंदेह ही एक प्रसिद्ध वीरांगना हुई है जिनके बारे मैं लोगों को बहुत कम जानकारी है ! छोटी से रियासत की ...