अग्नि शिखा अवतरण ...
अग्नि शिखा अवतरित बाला
दहक रही बन कर ज्वाला
नस नस में दह्के चिंगारी
जहर भरी मानो हाला !
सदियों से जलती आई हूँ
अग्नि परीक्षा देती
अग्नि शिखा स्वयं बन आई
अब तुम्हें निमंत्रण देती !
आओ छूओ अभिशप्त करो तुम
स्वयं आव्हान करती हूँ
धूत खेलों अब मेरे संग
खुद में ही दाव लगाती हूँ !
लाक्षा ग्रह की में ज्वाला हूँ
दावानल की चिंगारी
सुरसा जैसी प्रचंडता लेकर
उतरी हूँ बन अवतारी !
नाही मैं केवल उर्वरा
ना केवल सम्वेदन हूँ
उल्का पिण्ड सी जलु निरंतर
छू लो तो सब भस्म करूं !
डा इन्दिरा ✍
वाह दीदी जी लयबद्ध लाजवाब रचना
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