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सन्नाटा

सन्नाटा ..

खामोशी में सन्नाटा है
और ना जाने  क्या क्या बात
उसने आंखों में ना देखा
क्या क्या करती थी सम्वाद !
जरा कहीं आहट सी होती
मन के झट से द्वार खुले
सूनी गलियां सूना चौबारा
लो फिर जागी आस धुले !
हवा का चलना प्रष्ठ उलटना
अब तो मुझको खलता है
धीरे धीरे लफ्ज लफ्ज में
जाने क्या क्या बहता है !

डा इन्दिरा  ✍

Comments

  1. वाह!!बहुत खूब।

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  2. न तमन्ना न आरज़ू न कोई अरमान
    न ख्याल ही है कोई आने जाने का
    न शोर न खुशी, ना ही कोई गम है
    बस चिखता है सन्नाटा इंतजार का।।

    बहुत खूब सन्नाटा।

    ReplyDelete
    Replies
    1. वाह मीता रचना से अधिक बेहतरीन प्रतिक्रिया

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  3. वाह सखी खामोशी के सन्नाटे को सुंदरता से वर्णित किया।👌👌👌👌🌺🌹🌺

    ReplyDelete

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