वचन
जाते जाते पी की नगरी
यहाँ धान बिखराऊ
धन धान्य से भरा रहे मायका
जब भी वापस आऊँ !
यही बिखेर सकती हूँ कुछ भी
वहाँ ना मन मानी होगी
सभी समेटना होगा पी घर
वहाँ तो जिम्मेदारी होगी
हँसना खेलना और मुलकना
संग धान के छोड़ चली
साथ ले चली वचन तुम्हारा
बिटिया सब करना सही !
डा इन्दिरा .✍
सासु सुसरा रो वंश बढाओ सुवटडी
ReplyDeleteजस लिजो, सौ सुख पावो लाडली।
कोमल भावनाएं लिये सुंदर रचना ।
शुक्रिया मीता
Deleteबहुत सुंदर उक्ति..
ReplyDeleteकोमल सुंदर भावनाओं ..
आभार
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