बुदबुदा ...
में ( नारी )
बुदबुदा 
नहीं 
हकीकत
 हूँ ! 
ख्वाहिश 
नहीं 
मुकम्मल 
हूँ ! 
विशाल आसमां 
एक व्यक्ति 
एक 
सम्पूर्ण व्यक्तित्व 
हूँ ! 
पूर्ण 
अस्तित्व 
सम्वेदना मानवता 
और 
आस्था 
हूँ ! 
निशब्द 
निर्घण भाव 
नहीं 
सजीव और 
भवितव्य 
हूँ ! 
में 
बुदबुदा नहीं
 हकीकत
 हूँ ! ! 
डा इन्दिरा .✍
स्व रचित 
26 .8 .2018 
बुदबुदा नही हक़ीक़त हूँ
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
आभार 🙏
Deleteबेहद खूबसूरत रचना ।
ReplyDelete🙏आभार
Deleteनारी के अस्तित्व पर लगा प्रश्न चिन्ह हटाती सुंदर अभिव्यक्ति मीता ।
ReplyDeleteनारी को ही जगना होगा
Deleteतब प्रश्न चिन्ह का हटना होगा !
नमन
वाह!!! बहुत सुंदर हृदय को स्पर्श करती .... लाजवाब
ReplyDeleteस्नेहिल आभार
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