ललकार ...
दिन चढ़ता हैं नई भोर हैं
तीव्र चपल कुछ नया शोर हैं
उषा की लाली तप्त हैं
पवन चल रहा जरा सख्त हैं !
चारो ओर फैली हैं कटुता
व्याप्त हो रही कठिन अवस्था
दिग्गज दिग दिग डोल रहे हैं
कुकर्म सब बोल रहे हैं !
शीतल मलय भय सा फैलाती
सनी रक्त से धरा अकुलाती
ज्वलंत से अब भाव बह रहे
तीव्र प्रज्वलित ज्वाल हो रहे !
नर संहार अब बहुत हो गया
खर खप्पर तैय्यार हो रहे
धधक रही हैं आज भवानी
विध्वंश होय अब मन मेंं ठानी !
ना शन्ति अब ना समझौता
नये भाव हो नई व्यवस्था
सहन शक्ति को माने कायरता
अरि व्यवहार करे पशु जैसा !
बहुत हो गई अब मन मानी
मौका चूके कब वो ज्ञानी
समय पड़े परखिये भाई
मूरख , खल और दुश्कामी !
लो .....
आव्हान करती लेखनी
सुनो मेरी ललकार
चीख चीख कर जगा रही
क्या सोया हैं नर जाग !
क्या सोया हैं नर जाग !
डॉ इन्दिरा गुप्ता
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 13 फरवरी 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अतुल्य आभार लेखन सार्थक हुआ ! 🙏
Deleteचारो ओर फैली हैं कटुता
ReplyDeleteव्याप्त हो रही कठिन अवस्था
दिग्गज दिग दिग डोल रहे हैं
कुकर्म सब बोल रहे हैं ! ...बहुत ख़ूब सखी
सादर
आभार अनीता जी काव्य की आत्मा तक पहुचने के लिऐ !
Delete🙏
बहुत ही जोशपूर्ण प्रेरक रचना...
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