लेखन
ये है माध्यम
मन से मन का
कोरा बस एक
प्रष्ठ नहीं
लेखन भीतर
ढेरों क्षण है
लिखे हुए बस
शब्द नहीं !
सुनो ध्यान से
मसि की भाषा
मौन कह रही
छंद कई
जीवन भर का
गुणा भाग है
भाव सिक्त से
शब्द कई !
लफ्ज लफ्ज
बहता स्पंदन
हिय के कहता
जज्बात कई
इत वीणा
तार झंकृत है
उत बह जाती
अमि घार कोई ! !
डा इन्दिरा ✍
जी, सही है कि लेखन माध्यम है मन का..
ReplyDeleteसुंदर रचना।
thanx
Deleteबहुत सुंदर और सच्ची कविता
ReplyDeleteलाजवाब अतुलनीय
शुक्रिया
Deleteबहुत खूबसूरत .... बहुत खूब
ReplyDeletethanx
Deleteअप्रतिम सुंदर मीता लिखे हुए सिर्फ शब्द नही. ...
ReplyDeleteअतर के गहरे अनकहे भाव होते हैं वाह रचना
आप से बेहतर मेरे काव्य कौन समझ सकता है मीता आभार
Deleteबहुत बहुत अद्भुत असाधारण अप्रतिम।।।। नमन आपकी कलम को
ReplyDeleteआपकी प्रतिक्रिया साधरण को असाधारण बना देती है मौलिक जी आप जैसे एंकर आलोचक और कवि यदि सराहना करें तो लेखन सार्थक हो जाता है !
Deleteधन्यवाद
शुक्रिया bro आपकी वाह मैं भी जो बात है अविस्मरणीय है भाई
ReplyDeleteमन उत्साहित हो गया ..नमन