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लेखन

लेखन
ये है माध्यम
मन से मन का
कोरा बस एक
प्रष्ठ नहीं
लेखन भीतर
ढेरों क्षण है
लिखे हुए बस
शब्द नहीं !
सुनो ध्यान से
मसि  की भाषा
मौन कह रही
छंद कई
जीवन भर का
गुणा भाग है
भाव सिक्त से
शब्द कई !
लफ्ज लफ्ज
बहता स्पंदन
हिय के कहता
जज्बात कई
इत वीणा
तार झंकृत है
उत बह जाती
अमि घार कोई ! !

डा इन्दिरा ✍

Comments

  1. जी, सही है कि लेखन माध्यम है मन का..
    सुंदर रचना।

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  2. बहुत सुंदर और सच्ची कविता
    लाजवाब अतुलनीय

    ReplyDelete
  3. बहुत खूबसूरत .... बहुत खूब

    ReplyDelete
  4. अप्रतिम सुंदर मीता लिखे हुए सिर्फ शब्द नही. ...
    अतर के गहरे अनकहे भाव होते हैं वाह रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. आप से बेहतर मेरे काव्य कौन समझ सकता है मीता आभार

      Delete
  5. बहुत बहुत अद्भुत असाधारण अप्रतिम।।।। नमन आपकी कलम को

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी प्रतिक्रिया साधरण को असाधारण बना देती है मौलिक जी आप जैसे एंकर आलोचक और कवि यदि सराहना करें तो लेखन सार्थक हो जाता है !
      धन्यवाद

      Delete
  6. शुक्रिया bro आपकी वाह मैं भी जो बात है अविस्मरणीय है भाई
    मन उत्साहित हो गया ..नमन

    ReplyDelete

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