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रानी तपस्वनी अर्थात ब्रम्ह तेज

रानी तपस्विनी झांसी की रानी लक्ष्मी बाई  की भतीजी थी झाँसी  के ही एक सरदार नारायण राव की पुत्री थी !
बाल्य अवस्था मैं ही विधवा हो गई थी उनका वास्तविक नाम सुनंदा था !
इस विरक्त बाल विधवा की दिनचर्या ..पूजा पाठ , धर्मिक ग्रंथों का पठन पाठन और देवी उपासना मैं ही व्यतीत होती थी ! धर्मिक प्रवर्ति और और विरक्ति के कारण प्रजा की श्रधा का स्त्रोत बन गई ! लोग उंहे माताजी कहने लगे ! गौरवर्ण , तेजस्वनी मुख वाली वो बालिका चण्डी  की उपासक थी !
चाची यानी लक्ष्मी बाई की तरह ही घुड़सवारी , तलवार बाजी और अस्त्र शस्त्र चलाने मैं निपुर्ण थी ! और निरंतर अभ्यास करती रहती थी ! निराशा शब्द का उनके जीवन मैं कोई स्थान नहीं था ! अपने पिता के देहांत के बाद वो उनकी जागीर का काम सभालने लगी ! दुर्ग को दुरुस्त कर दृढ़ बनवाया नये सैनिकों की नियुक्ति की उनको प्रशिक्षण देकर सैना  को और योग्य बनाया !
अंग्रेजों के प्रति उनके मन मैं तीव्र घ्राणा  थी ये घ्रणा  उनके वक्तव्यों मैं साफ झलकती थी ! अंग्रेजों को इसकी सूचना मिली वो उन पर नजर रखने लगे पर देखा एक विधवा नारी पूजा पाठ वाली धोखा क्या दे पायेगी निगरानी हटा ली !
उनका नैराष्यारण नामक आश्रम था वहां लोग उनके दर्शन को आते वही वो लोगों मैं उपदेश के साथ साथ  अंग्रेजों के प्रति विद्रोह भी भरती  थी ! अपने विश्वसनीय भक्तों को साधु संयासी के वेश मैं अंग्रेजों की सैनिक छावनी मैं भेजती वो देश के सैनिकों को अंग्रेजी शासन के विरुद्ध करने के लिये प्रवृत करते !सन  1857 गदर से पहले सैनिकों को बताया अंग्रेज तुम लोगों को तुच्छ समझते है , काला निगर कह कर तुम्हरा अपमान करते है ! ये लुटेरे है देश को कंगाल कर रहे है ! तुम्हें और अंग्रेज सैनिकों को देश की आय मैं से ही वेतन देते है ! उनकी आज्ञा मान तुम अपने ही देश को डुबोने का काम  कर रहे हो ! फलस्वरूप छावनी मैं सैनिक  विद्रोह कर उठे !
सन 1857 मैं युद्ध हनी के पूर्व नाना साहब ,  तात्या टोपे , अजीमुल्ला खाँ  रानी तपस्वनी से मिलने उनके आश्रम मैं आये थे ! उनके साथ विद्रोह की चर्चा हुई ! बस फिर क्या था अंग्रेजों को क्षणों कान खबर हुए बिना ही गांव गांव रोटी भेजने की प्रथा का फायदा उठा रानी ने गांव गांव और कस्बे कस्बे विद्रोह सिद्ध करने का संदेशा भिजवाया ! सब जगह धीरे धीरे विद्रोह की ज्वाला धड़कने लगी !
निश्चित दिन से पहले विद्रोह हो गया  ! रानी तपस्वनी के कारण ही गांव के लोग विद्रोह के सहभागी हुए ! पर अंग्रेजों के आती आधुनिक हथियार और भारी सेना के कारण विद्रोह अधिक जोर नहीं पकड़ पाया ! बल्कि जनता पर क्रूर अत्याचार हुए और विद्रोह को दबा  दिया
ज्ञा ! रानी समझ गई अन्य राजाओ ने  द्रव्य लोलुपता के
कारण देश से विश्वासघात किया है ! वह नाना साहब के साथ नेपाल चली गई ! पर नेपाल नरेश अंग्रेजों से डरते थे तो वहां रहां उचित नहीं लगा सम कोलकता आ गई ! पर णेपस्ल मैं अपने प्रवचनों द्वारा  स्वतंत्रता के महत्व को बार बार समझाया !
रानी ने कोलकत्ता मैं महाभक्ति पाठशाला की स्थापना की जहाँ  लोकमान्य तिलक और उनके साथ अखबार केसरी के उप सम्पादक खान्डिल्कर भी मिलने आये !
रानी ने उनके साथ मिल कर नेपाल मैं अस्त्र शस्त्र बनाने का कारखाना आरम्भ किया ! कारखाने को खोलने की नीति खान्डेल्कर जी की ही थी ! जिसेने रानी को भूत प्रभावित किया ! रानी की नेपाल के सेना पति से अच्छी जानकारी थी वो रानी का भूत माँ करते थे इसी पहचान के कारण नेपाल मैं "बाह्य्न टाइल " नाम से निर्मित  कारखाने मैं असल मैं टाइल  के स्थान पर अस्त्र शस्त्र बनते थे जो बंगाल मैं भेजे जाती थे !
यहां भी विश्वासघात के कारण खाडिल्क्र पकड़े गये और एसे  जयचंदों के कारण रानी का  क्राँति  प्रयास विफल रहा !
ये देख रानी काफी विचलित हो गई और उदास रहने लगी ! वृध्दावस्था आ जाने के बाद भी रानी ने बंगाल विभाजन युद्ध मैं भाग लिया !
अंत मैं सन 1905 मैं भारत की इस महान विदुषी और क्रांतिकारी रानी का निधन हो गया !
महराष्ट्र को क्या सारे भारतवर्ष को एसी महान क्रांतिकारी वीरांगना नारी को याद रखना चाहिये ! इतिहास गवाह है एसी चिंगारियों के जलते रहने से ही
अंग्रेजों के मन मैं भय व्याप्त हो गया  था की वो भारत पर अधिक दिन तक शासन नहीं कर पायेंगे ! ये चिंगारियां जल्दी ही ज्वाला बन देश आजाद करा कर ही दम लेगी !
1
नाम सुनंदा गौरवर्ण की
वो सुंदर बाला  थी
रानी लक्ष्मी की भतीजी
नारायण राव की वीर सुता थी !
2  
बाल विधवा होने के कारण
विवाह दूसरा नहीं किया
पूजा पाठ मैं व्यस्त रहने से
तपस्वनी उनका नाम पड़ा !
3
रानी तपस्वनी सन्यासी जैसे
जीवन यापन करती थी
बाल्य काल से पूजा -पाठ- तप
देवी चण्डी  की बडी भक्तन थी
4
यधपि विधवा थी रानी पर
नहीं किसी से डरती थी
घुड़सवारी और  तलवार बाजी
चाची लक्ष्मी से ही सीखी थी !
5
क्लेश , दुख , निराशा उनको
लवलेश मात्र भी ना घेरे
पिता के देहांत बाद
पुरु जागीर संभाली उसने !
6
दुर्ग -किलो को दुरुस्त कराया
सैनिक नये रखाये थे
हर सैनिक युद्ध मैं निपूर्ण हो
एसे  आदेश सुनाये  थे !
7
सैन्य प्रशिक्षण चाची जैसा
हर सैनिक को देती थी
स्वयं रानी घूम घूम कर
सैना का निरीक्षण करती थी !
8
एक बात अंग्रेजों को
तपस्वनी की खटक रही थी
अपने प्रवचनौ  मैं सदा वो
अंग्रेजों की निन्दा  करती थी !
9
चिढ़  कर रानी पर नजर रखी
अंग्रेजों ने युक्ति लगाई
फिर देखा अबला विधवा है
धर्म कार्य मैं पड़ी दिखाई !
10
नैमिष्यारण  रानी का आश्रम
बड़ा विशाल और सुरक्षित था
लाखों लोग दर्शन को आते
रानी का ये गुप्त गढ़  था !
11
भक्ति प्रवचन  पूजा पाठ
सब रानी के ही गुण थे
इन्हीं गुणों से माताजी कहलाई
भक्त बड़े ही उनके थे !
12
प्रवचनों मैं ही रानी ने
प्रजा को समझा कर उकसाया
अंग्रेज हमारे दुश्मन है
हमैं लूटने केवल आया !

डा इन्दिरा  ✍
क्रमशः

Comments

  1. विलक्षण प्रतिभा की धनी रानी तपस्विनी को नमन
    बहुत सुंदर काव्य प्रसारण।

    ReplyDelete
  2. बहुत अच्छी जानकारी के साथ काव्यात्मक प्रस्तुति .........बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  3. वाह! बहुत सुन्दर और शिक्षाप्रद प्रस्तुति!!!

    ReplyDelete
  4. वाह दीदी जी
    नतमस्तक हूँ आपकी इस रचना को और रानी सुनन्दा की बुद्धिमती और वीरता को
    शानदार वीर रस से संपूर्ण होती है आपकी वीर बहुटी

    ReplyDelete

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