तेरा शहर .... रूठने मनाने की हद से बाहर हो गये अब तो , ताबीज मन्नत और तिजारत सब बेवफा हो गये अब तो , ये बेरुखी ये तिश्नगी ये बेचारगी अब और नही , तू नही तेरा शहर नही तेरी कूचाये खाक अ...
नारी .... शक्ति रूपा या चण्डीका भक्ति रूपा अभी नन्दन तू , भू दोलन आन्दोलन रक्षित रूप सहस्त्र कर तू , सव्य धारिणी भय हारीणी अवलोकन और विमोचन तू , नूतन किसलय रूप चन्द्रिका अमि कल...
बत रस पर निन्दा रस भाव की बड़ी ही अदभुत बात कहत सुनत बोलत सभी मन अति आनंद समाय चाकी जैसी रसना चले सरस भरी रस खान बत्तीस दांतो मध्य भी चुप ना रहे वाचाल ! रसना अति चालाक हैं रखो ...
पंख पँख बांध कर तोलते तुम मेरे अरमान दम हैं तो खोल दो बन्धन भरने दो परवाज़ ! भरने दो परवाज़ स्वयं को सभ्य बनाओ अहंकार भर जो करते हो उस पर विचार कर जाओ ! पँख नोच कर घायल करते टुक...
लोरी 🌾🌾 मेरे दिवा स्वप्न साकार पुत्र के लिये लिखी लोरी जब वो हॉस्टल की पहली रात सो नही पा रहा था ...... तेरे रक्त की लालिमा मेंं जो धवल कणिकाएँ बहा करती मातृ दुग्ध के धवल धार की तु...
चरित्र ..... चरित्र एक व्यापक सी बात हैं जड़ चेतन सब व्याप्त रहे अति विचित्र परिभाषा इसकी बिन इसके कब बात बने ! आदि काल से चली आ रही विचित्र चरित्र मीमांसा कभी सत्य मेंं कभी फरेब...
मानवता .... चौवनवां कदम पढ़ने और लिखने तक ही मानवता का अहसास जरूरी हैं वरना कब समझे हैं हम की माँ बाप जरूरी हैं ॥ टेक फॉर ग्रांटेड लेना तो अब हम सब की रीत हुई माँ बाप की सिर्फ जरू...
व्यथा ... बार बार चाहा मेंने मिलन पुनः कर डालूँ अहं का सर झुका झुका कर व्याकुल मन को समझा लू आतुर मन को मना मना कर पुनः निकट बैठा लू ! पर ...... नही तुम्हारा पुरुषत्व कुछ भी तो समझ ना पा...
वो जा रहा हैं .. वो जा रहा हैं हमसे बिछड़ कर जमी रो पड़ी आसमां को तक कर कैसी थी चाहत कैसी कशिश थी पलकें थी गीली सुखी हँसी थी दिल कह रहा था मुड़ के वो देखे कदम कह रहे थे कोई हमको टोके ...
पिता बेटी का नाता ... सघन वृक्ष की घनी छाँव सा सशक्त दृढ़ आभास एक अटल विश्वास सरीखा मन का सुदृढ़ पड़ाव ! सम्पूर्ण काव्य रस छंद अलंकृत नव सृजन सा भाव एक बलिष्ठ वलय बांह का सर पर स...