श्रृंगार संगमरमर सा शफ्फाक और मरमरी बदन कंचन, कनक, कमीनी , या भीगा हुआ कमल ॥ झूल्फे झटक के बूंदें कुछ इस तरह गिरी शबनम गिरी हो अर्श से या मोती की कोई फसल ॥ कांधे पे उनके झूलती वो काली घनी लटें लगता था जैसे महक रहा कहीं कोई संदल ॥ गज गामिनी सी चाल है पायल बजे कमाल लफ्जों मैं ढल के लिख रहा जैसे कोई ग़जल ॥ डॉ़ इन्दिरा गुप्ता यथार्थ