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Showing posts from September, 2020

श्रृंगार

श्रृंगार  संगमरमर सा शफ्फाक और मरमरी बदन  कंचन, कनक, कमीनी , या भीगा हुआ कमल ॥  झूल्फे झटक के बूंदें कुछ इस तरह गिरी  शबनम गिरी हो अर्श से या मोती की कोई फसल ॥  कांधे पे उनके झूलती वो काली घनी लटें  लगता था जैसे महक रहा कहीं कोई संदल ॥  गज गामिनी सी चाल है पायल बजे कमाल  लफ्जों मैं ढल के लिख रहा जैसे कोई ग़जल ॥  डॉ़ इन्दिरा  गुप्ता  यथार्थ