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Showing posts from September, 2018

चंद अल्फाज

चंद अल्फाज ... ☘ हर बात पर गहरी वो नजर रखते है वफा हो या बेवफाई कायदे से निभा लेते है ! ☘ ना उम्र का जिक्र हो ना अल्फाजों का बंधन यहां इश्के कशिश जारी जो देखें केवल मन ! ☘ चंद  अशआर ना चंद अजाने इबादत है चंद अश्क दाने ! ☘ सजदे में झुक जाना झुक कर दुआ करना गर इश्के खताये है मंजूर खता करना ! ☘ सजदा जिसको करते है खुदा मालूम देता है मोहब्बत में इबादत का कहाँ मालूम देता है ! ☘ एक गुनाह रोज सुबह शाम करता हूँ खुदा से पहले माँ का नाम लेता हूँ ! डा इन्दिरा  .✍ स्व रचित

पापी पेट

पापी पेट ... भरी दोपहरी भरा हौसाला तपन बाहर भीतर सब एक अगन भूख की मन झुलसाती सूरज की आग सेंकती देह ! छोटी उम्र हौसले भारी धूप अलाव सी जला करें कलम उठाने वाले कर जब बोझ ग्रहस्थी आन पड़े ! और अधिक जेठ क्या जलेगा हिय की जलन दिन रात बढे गुड्डे गुडिया वाली उम्र जब रिक्शे का पैडल खींच रहे ! पापी पेट क्या क्या करवा दे ना करवाये सो कम है भरी दोपहरिया घाम करें क्या चूल्हा जल जाये बस ये मन है ! डा इन्दिरा .✍ स्व रचित

मिलन

मिलन ... बालपने की सखी सहेली वृद्ध अवस्था जाय मिली भूल गई पीड़ा जीवन की एक दूजे से गले मिली ! वही ठहाका वही खुशी थी बात बात पर था हँसना बचपन की सुनी गलियों में दोनों का पुनि जा बसना ! याद आ गई नीम निमोली कच्ची अमिया का चखना भरी दोपहरी घर के पीछे गुट्टे के पत्थर चुनना ! खुद दादी हो गई है अब पर बचपन की मीठी याद आई एक एक बेर के खातिर कितनी हमने करी लड़ाई ! निश्छल हँसी हुई प्रवाहित कब बिछुड़ी थी भूल गई कल जैसी बातैं लगती है साथ खेल कर बड़ी हुई ! डा इन्दिरा .✍ स्व रचित

अबला / उर्वरा

अबला / उर्वरा हुंकार उठी सिंहनी अब दुर्गा अवतारी है कितने भी भैरव आ जाये एक अकेली भारी है ! रणचण्डी जब जाग्रत होती खण्डन हो या मण्डन हो खर खप्पर भरे रक्त से अरि मुन्डो का छेदन हो ! हट्ट हट्ट सुभट्ट भट भट चिंगारी सी धधके जाये अबला कहने वाले नर वीभत्स रूप से थर्राये ! सौम्य रूप स्वीकर करो या रौद्र रूप को सहन करो नाहक गाल बजाने वालों अपना अंतस तैय्यार करो ! विनाशकारिणि भयहारिणि अब जाग उठी समय भापो अंकुश स्व स्वभाव पर रख लो समय रहते तुम जागो ! युग बदला अब तुम भी बदलो खुले दिल स्वीकार करो अबला नहीं उर्वरा है ये जननी है कुछ मान करो ! डा इन्दिरा .✍ स्व रचित 21.12 .2017

धुंधलाये अहसास

धुंधलाये अहसास ... तू चल में आया जैसा नाता बड़ा विचित्र नजर आता साथ साथ रहते है फिर भी यायावर सा सब लगता ! यही हो रहा सब के संग में कोई किसी के साथ नहीं साथ साथ रहने का भ्रम साथी है जज्बात नहीं ! मिलों दूर नजर आते है पास हमारे खड़े हुए हाथ बढ़ा कर छूना मुश्किल रूखे से व्यवहार हुए ! साफ नहीं पहचान किसी की धुंधली सी आकृति लगे अंजाने से धुंध के पीछे धुंधले से अहसास लगे ! डा इन्दिरा .✍ स्व रचित

उपालम्भ

उपालम्भ .... भौंचक रह गये ज्ञानी उधो बुद्धि लगी चकराने भोली ग्वालिन अनपढ़ जाहिल कैसो ज्ञान बखाने ! तभी तमक कर बोली ग्वालिन का आये हो लेने मूल धन तो अक्रूर जी ले गये तुम आये क्या ब्याज के लाने ! हमरो मारग नेह को फूलन की सी क्यारी निर्गुण कंटक बोय के काहे बर्बाद कर रहे यारी ! तुम तो ज्ञानी ध्यानी उधो एक बात कहूँ सांची कहीं सुनी नारी जोग लियो है का वेद पुराण नहीं बांची ! जाओ उधो और ना रुकना बात बिगड़ जायेगी कान्हा पर रिस आय रही है तोपे  पे उतर जायेगी ! एक तो इति दूर बैठे है ऊपर से ज्ञान बघारे निर्गुण सगुण को भेद बतरावे का ..हमकू बावरी जाने ! नेह ज्ञान में एक चुननौ थो नेह कु हम चुन लीनो बीते उमरिया चाहे जैसी अब नाही पालो बदलनौ ! कहना जाके अपने श्याम से तनि  चिंतित ना होये आनो है तो खुद ही आये और ना भेजै कोये ! डा इन्दिरा .✍

तृष्णा

तृष्णा .. क्षणिकाएं ...              ☝ तृष्णा एक मीठा सा दर्द है रह रह कसक जगाये चुभे शूल सम हिय में भारी ना चुभे तड़प दे जाय !                 ☝ तिस तिस तृष्णा ना मिटे तिल तिल अगन  लगाये जिस दिन तृष्णा मिट गई वा दिन नमः शिवाय !                 ☝ तृष्णा एक कोहरे की हवेली दल दल मैं खड़ी लुभाय कदम बढ़ा कर घुसना चाहे तुरत अलोप हुई जाय !                ☝ तृष्णा एक विभीषिका तन  पिंजर कर जाय प्राण हरे तब ही मिटे उससे पहले नाय ! डा इन्दिरा गुप्ता स्व रचित

चयन

चयन खोल रहा जो दर स्कूल का या दर जेल का बन्द करे कौन प्रिय कौन श्रेष्ठ है आओ उसका चयन करें ! चुनाव श्रेष्ठ का सरल नहीं है प्रिय भी है अनमोल सही प्रेम प्रलोभन कह ठुकराना संकीर्ण विचार और कुछ भी नहीं ! दोनों भिन्न पर प्रबल प्रलोभन दोनों उदभव दोनों उदबोधन सभी बंधे है इसमें कस कर पर विरोध करते है जम कर ! प्रेम छोड श्रेष्ठ को धाये पुनि पलट कर वापस आये यही प्रक्रिया जीवन भर चलती प्रिय मिले ना श्रेष्ठ को पाये ! डा इन्दिरा ..✍ स्व रचित

इबादत

इबादत .. देग चढ़ाई संत ने कांकर पाथर डाल और मसाला डाल कर दीनी आग लगाय दीनी आग लगाय लोग सब देखन लागे आज फकीर के मन में भाव ये कैसे जागे ! पकी देग आग से उतरी लोग अचम्भौ खाय बिरयानी से भरी देग थी पुरो लंगर खाय ! दूर फकीरा लिये चिमटा अलख लगातौ जाय करो इबादत सच्चे मन से ईश्वार होय सहाय ! डा इन्दिरा .✍ स्व रचित

उठो

उठो आर्य ...✊✊ उठो आर्य अब बाना पहनो वीर कर्ण और अर्जुन सा दो क्या चार हाथ धारण कर दमन करो अरि मुन्डो का ! अन्दर बाहर दावानल है जन मानस हो रहा विकल रक्त नदी बहने के खातिर आतुर है अति और प्रबल ! धरा मांगती कर्ज पुत्रों से उठो अब कर्ज चुकाना है जब तक रक्त ना प्लावित होता धरती कहाँ उर्वरा है ! कौरव पांडव _ द्वापर त्रेता बहुत सुनी है कथा कहानी मधुसूदन ने शंख बजाया देश हित माँगी कुर्बानी ! अब कथा नहीं करतब होगा मातृ भूमि तन अर्पण होगा विश्व विजय का रक्त बीज हो विश्व विजय करना ही होगा ! फूंक मार जूफान जगा दो पद प्रहार कोलाहल हो लोहे से लोहा टकराये मन भीतर अंगार हो  ! पढ़ कर ज्वाल जले ना दिल में हर बाजू ना फड़क उठे व्यर्थ लेखनी का प्रवाह तब व्यर्थ मेरा आव्हान लगे ! डा इन्दिरा .✍ स्व रचित 9  .9 . 2018

नई फसल 🌾

नई फसल  ...🌾 हथेली में  सूर्य उगाये नई फसल की बाली हूँ नहीं समझना मुझको कन्या में दुर्गा अवतारी हूँ ! शीतलता मुझमें सरिता की पावनता गंगा जैसी नहीं समझना केवल पानी बिगडू तो सुनामी हूँ ! सीचो पालो दूँ  उर्वरता जग में भरदूँ मृदु सरसता उठा लिया गर हाथ गडासा महाकाल कोलाहल हूँ ! जागो और ध्यान से देखो लिये हथेली सूर्य चली में चाहो तो प्रकाश उर भर लो जली तो में दावानल हूँ ! डा इन्दिरा .✍ स्व रचित

शिक्षक

शिक्षक ...✒ हिय धरा पर ज्ञान की जो बहाये गंग गुरु पारिजात पुष्प सम ईश्वर सा सम्बन्ध ! तिमिर काल में ज्योति सम भरे उजास उमंग जीवन में मुक्ता मणि जैसा सदा रहे वो संग ! निस्वार्थ भाव हिय में धरे ना कोई स्वारथ जान गुरु .पितु मात इन तीनों को ईश्वर अपना मान ! डा इन्दिरा .✍ स्व रचित 5 .9 . 2018