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Showing posts from October, 2018

अखण्ड सुहाग

अखण्ड सुहाग .. प्रियतम तेरे कारने सोलह किया शृंगार मैहदी .बिछिया , पायल ' कंगना पहना नवलखा हार ! पहना नवलखा  हार नैन काजल कजरारे माथे लगी सिंदूरी बिन्दियाँ होट भये रतनारे ! चाल ...

मसि

मसि ... मसि बहती हिय पन्नों पर कहीं कम कहीं ज्यादा ! पन्ना गीला तो हो जाता कहीं कम कही ज्यादा ! मन भी दुखा उम्र भर कहीं कम कही ज्यादा सन्नाटा सा भी पसरा है कहीं कम कही ज्यादा ! हाथ ...

जीवन / संतुलन

जीवन एक संधान ! मन संतुलन राखिये सुख दुख एक समान हर्ष विषाद एक तराजू खुद को वस्तु मान ! प्राणी जीवन एक संधान ........ हर पल हर क्षण तुल रहे तुल रहे है  बिन  भाव तोला माशा जिंदगी नाप सक...

स्व

स्व ... स्व है  प्रज्ञा स्व है  संज्ञा स्व है एक मर्यादा स्व बिन जाने कैसा जीना स्व की ना करो अवज्ञा ! स्व ईश है स्व कर्म है स्व धर्म है शाश्वत स्व बिन जाने गति नहीं है स्व सदा रह...

कान्हा की पाती

कान्हा की पाती .... सगरी मोपे दोष धरो हो मैं मथुरा आके भूल गयो बिसर गयो मोकू वृंदावन मधुबन नाही याद रहो ! कभी नाही ये सोचो राधे तुम सब साथ में यहाँ  इकलौ कैसे आयो हूँगा छोड़ के तुम ...

शरद ऋतु

शरद ऋतु .. शरद ऋतु की शरद चांदनी चन्द्र किरण भी सोहे आज बैठे गवाक्ष मैं सुध बुध खोये अद्भुत सोहे राधेश्याम ! राधा आनन पूर्ण चन्द्र सो संग सोहे श्याम घटा से श्याम पूर्ण उजास फै...

विजय दशमी

विजय दशमी .. कैसे कहूँ शुभ हो  दशहरा अभी तो रावण मरा नहीं सीता कब आजाद हुई है ग्रह रावण बन्दी है अभी ! कहाँ राम विजय पाये है लक्ष्मण मूर्छित अभी वही संजीवनी बूटी लेकर लौटे हनुम...

नारी उत्पीड़न / कानून

नारी उत्पीड़न / कानून .. कितना रोका और बढाया नारी के उत्पीड़न को कहे इन्दिरा हाथ बढ़ा खोलो कानूनी वातायन को ! मोटे मोटे संविधानौ में लाखों धारायें बनवाते धाराओं की द्फाओ में भोली नारी को फंसवाते ! समय आने पर ये धारायें कनून को दफा कर देती पुरुष के अहम समुद्र में नारी को काल तिरोहित करती ! जिव्हा होगी मूक और आँखें स्थिर हो जायेगी देखोगे जब धक धक जलती ! धारा दफा तदूंरो में  !  नारी और कानून का नाता  कैसे होगा पोषित  कानून बनाने वाले कर में जब कलम नहीं परिष्कृत ! कानून नहीं सजीव सी वस्तु जिसमें एहसास समाहित हो कागज की बेजान किताबें नारी क्यूँ ना भस्मित हो ! रूप कवर या भंवरी देवी नैना देवी या निर्भया काण्ड जिस घर में भी जा कर देखा हर घर में जलते अरमान ! जागो पुरुषों धरो ध्यान तुम हनन हो रहा स्वयं तुम्हारा मातृत्व के बढ़ते अभाव में कहाँ बचेगा अस्तित्व तुम्हारा ! बदलो ऐसा कानून जहाँ व्यभिचारी आश्रय पाते है सरे आम तेजाब फैंकते बेगुनाह कहलाते है ! डा इन्दिरा .✍ स्व रचित 10  .11. 98

हाहाकार

हाहाकार .. कर बद्ध प्रर्थना सुनो मात तुम कड़वा सच सुनलो तुम तात बहना की विनती है भय्या नहीं करो मेरा बलिदान ! तेरी कोख का में भी मोटी और अंखियों की ज्योति स्नेहिल धागा तेरे प्र...

शमशान

शमशान देकर बलि दानव  दहेज को नहीं कहो तुम दान मात तात तुमने ही क्यूँ कर लिये कली के प्राण ! नहीं विवशता ये तो कोई नही कहो ये भाग्य झूठे दम्भ झूटी गरिमा पर क्यूँ चढ़ते परवान ! ना ...

पत्थर का माँ / जीवित माँ

पाथर  की माँ / जीवित माँ पाथर की माता ला रहे खुश होकर घर आज हंसी खुशी से सजा रहे माता का  दरबार ! द्वार खोल खड़ा माँ खातिर पूजन की करली तय्यारी षटरस व्यंजन पायस मीठा धूप दीप धरे भ...

शबनमी कतरा

शबनमी कतरा ... जज्बाते रंग कुछ बिखर रहे है एहसासे चिलमन भिगो रहे है पिघल रही है सिंदूरी वादी इन वादियों में हम खो रहे है ! सिमटी है सहर मेरे आशियाँ में गुले गुलज़ार से हम हो गये ह...