शरद ऋतु ..
शरद ऋतु की शरद चांदनी
चन्द्र किरण भी सोहे आज
बैठे गवाक्ष मैं सुध बुध खोये
अद्भुत सोहे राधेश्याम !
राधा आनन पूर्ण चन्द्र सो
संग सोहे श्याम घटा से श्याम
पूर्ण उजास फैलो है धरा पर
धरा है गई स्वर्ग समान !
शरद चंद्र भी पूर्ण रूप ले
खुल कर छाय गये नभ माय
निरख रहे अलौकिक जोड़ी
बिसर गये निज सगरे काम !
मुक्ता मणि सी शीतल चाँदनी
झर झर बरसी पूरी रात
खग मृग वृंद जड़वत है गये
वर्णि ना जाये शोभा आज !
लोक अलोक को भेद भूल गये
सरस भाव सम भाव बहे
देह विदेह सभी विस्मृत था
मग्न निमग्न सब विभोर भये !
डा इन्दिरा गुप्ता .✍
स्व रचित
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 25 अक्टूबर 2018 को प्रकाशनार्थ 1196 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
विशेष आभार
Deleteबेहतरीन रचना इंदिरा जी
ReplyDeleteराधा आनन पूर्ण चन्द्र सो
ReplyDeleteसंग सोहे श्याम घटा से श्याम
पूर्ण उजास फैलो है धरा पर
धरा है गई स्वर्ग समान !
बहुत ही सुन्दर मनोहारी काव्यचित्रण शरदपूर्णिमा का....
वाह!!!!
सुन्दर रचना
ReplyDeleteसभी का अतुल्य आभार 🙏
ReplyDeleteआपकी चिरपरिचित शैली में लिखी रचना का सौंदर्य अद्वितीय है इन्दिरा जी।
ReplyDeleteऔर बात जब आपके सखा की.आती है तो आपकी क़लम अद्भुत रागिनी छेड़ती है जिसमें भाव-विभोर होकर मन आनंदित होता है।
बेहद सुंदर रचना आपकी👌👌
वाह!!लाजवाब रचना 👌👌👌
ReplyDeleteवाह अति मन भावन सुंदर श्रृंगारित काव्य मीता राधा श्याम सा अनुपम।
ReplyDeleteबहुत सुंदर काव्यमय रचना ...
ReplyDeleteप्राकृति की इस अनुपम दें जो शरद पूर्णिमा है ... अनेक आयाम समेटे ये दिन सच में ख़ास है ...