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Showing posts from July, 2018

नव दिवस अभिषेक

नव दिवस अभिषेक ... प्राची से निकला है दिनकर नव युग का अरमान लिये नव प्रभाती नव जाग्रति उज्वल से कुछ भाव लिये ! स्वर्णिम किरण भासित है जल थल स्वर्ग धरा सा भरम धरे मस्तक ऊंचा किये शिखर है शिशु से बादल खेल रहे ! नीला अम्बर स्वर्णिम दिनकर अंतस ओज के स्वर भर लें पावन सा हर मन मंतर है नव दिवस अभिषेक करै ! डा .इन्दिरा .✍ 30 .7  .2018

क्षणिकायें

क्षणिकायें ...                 🌷  मन आज व्याकुल पंछी सा यादों संग उड़ता जाये ख्वाब नहीं तीखी पीड़ा है क्या क्या आज कुरेदा जाये !                   🌷 व्यथा कलम जब चले कागज पर सिर्फ अश्क ही लिख पाये गड मड हो जाये भाव कलम के मन चातक सा चिचियाये  !                   🌷 सागर तीर पसरा सन्नाटा चाँद उनिंदा हो जाये आये नहीं कोई भी आहट रात शबनमी अश्क बहाये !                    🌷 भोर भये तक रही अकेली इधर अकेला चाँद दोनों ओर ही रही बेबसी कब तक बैठे दिल को थाम !                    🌷 होती जो आहट धीरे से हम भी धीमे से मुस्काते इसी बहाने से ही साहब यादों में वो आ जाते ! डा .इन्दिरा .✍

चंद्र ग्रहण

चंद्र ग्रहण ... शीतल श्वेत चंद्र की काया हो गई लालम लाल धरा तपत चंद्र तक पहुंची द्वेश ज्वाल जा पहुंची हाय ! शांत भाव तज कर वो भी बरसों बाद गुस्साया आखिर कितना सबर करे संगत का असर रंग लाया ! सब्र बांध चंद्र का टूटा कब तक संयम रखता धरा उष्णता बढ़ती जाती कब तक नहीं खदकता ! कलयुग का असर चंद्र पर पूर्ण रूप से व्याप्त हुआ बन ना जाये मानव जैसा दे ना जाये वो धोखा ! डा .इन्दिरा  .✍ 30 .7 .2018

आसमां तेरा है

आसमां तेरा है .... मनु , गर मन तू जिंदा है तो ये आसमां तेरा है गर मन तू एक परिंदा है तो ये आसमां तेरा है ! शब्द केवल शब्द नहीं है अर्थ भरा इनके भीतर पंख तोल और उड़ान ले देख आसमां तेरा है ! ख्वाब .जज्बात और सपने देखने बहुत जरूरी है सच करने का यतन करें तो देख आसमां तेरा है ! पत्थर तो बिखरे रहते है मारो या एकत्र करो चुने गारे मैं चिन जाते तो ऊंचा चौबारा तेरा है ! विचार  .कुविचार भ्रमित से करते हर मन में विचरण करते यदि ज्ञान की सान चढ़े तो वेद वाक्य फिर तेरा है ! द्रड मन और विश्वास अगर हो ताल ठोक आगे बढ़ जा मंझिल स्वयं कदमों में होगी कल का परचम तेरा है ! डा इन्दिरा .✍ 28 .7 .2018

वीर बहुटी ..वीरांगना जैतपुर की रानी

वीर बहुटी वीरांगना जैतपुर की रानी ..✊ बात उस समय की जब ईस्ट इंडिया कम्पनी विस्तार नीति का पालन कर रही थी ! लार्ड क्लाइव ने भारत में ब्रितानी राज्य की स्थापना की ! जिसे लार्ड कार्न्वलीस और लार्ड बेलेजली  ने भारत के कोने कोने में फैला दिया ! लार्ड डलहौजी ने हड़प की नीति अपनाते हुए झांसी .सतारा .आदी राज्यों को कम्पनी साम्राज्य में मिला लिया ! बाकी बचे राजाओं और सरदारों के अधिकार भी समाप्त कर दिये ! लार्ड एलन वर्ड ने जैतपुर जैसी छोटी सी रियासत के स्वतंत्र अस्तित्व को तहस नहस कर दिया ! जैतपुर बुंदेलखंड की एक छोटी सी रियासत थी ! कम्पनी सरकार ने 27 नवम्बर सन 1842 ई में जैतपुर पर अधिकार कर उसे ब्रितानी राज्य में मिला लिया ! उस समय जैतपुर में आजादी का प्रेमी राजा परीक्षित शासन करते थे ! उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य ब्रितानी सत्ता को भारत से जड़ से उखाड़ फैंकना था ! पर वह कम्पनी सरकार की तुलना में बहुत कमजोर और कम थे ! अतः कम्पनी सरकार ने बहुत आसानी से उन्हें पराजित कर जैतपुर पर अपना अधिकार कर लिया ! ऐसी स्तिथि में राजा परीक्षित को अपना जैतपुर छोड़ कर भागने को विवश होना पड़ा ! ब्रिटिश सरकार ने अ

किस्मत की बिसात

किस्मत की बिसात ... किस्मत की क्या बात कहे किस्मत की अजब बिसात किस्मत ने कर डाले भय्या कई अजब से काज ! लक्ष्मी नारायण भीख मांगते दुर्बल सिंह मुटियाये शांति बहन रहे अशांत सी दिन दिन  भर बतियाये ! शेर सिंह की बजे अस्थियां पहलवान सिंह सूखे पतलू राम एक बार मैं सौ सौ  पूरी ठूंसे ! हाकिम सिंह बोझा ढोते दास बाबू हुकुम चलाये उलट पुलट हो जाती दुनियाँ जब किस्मत चक्र चलाये ! अंतरंगी सी इस दुनियाँ की अंतरंगी हर बात काली कोयल मीठी बोले कड़वी नीमोली मीठी हुई जाय ! सो भय्या कान दबाय के चुप्पे जिये जाओ किस्मत रानी जाने कब तोये जीवन चौसर देय जिताय ! डा .इन्दिरा .✍

किस्मत / तदबीर

किस्मत / तदबीर .. मन्नत का धागा बांधों या अरमानों की अर्जी देने वाला तभी देता जब होती उसकी मर्जी ! कोई इसको किस्मत कहता कोई कहता भाग्य मिलना होगा तभी मिलेगा चाहे जितना भाग ! तकदीर काम करती है हर पल तदबीर भी साथ निभाये दोनों जब मिल जाये एक एक ग्यारह हो जाये ! क्या होगा , होगा या ना होगा छोड़ो सारा प्रलाप कमर कसो और बढ़ चलो करो नहीं संताप ! नदी किनारे कब मिले मुक्ता मणि जनाब गहरे पानी पैठ कर मिलती मोती की आभ ! डा इन्दिरा .✍

गुरु कृपा

गुरु कृपा .... गुरु कृपा अति कीमती ना साधारण मान प्रलय और निर्माण में पलते एक समान ! गुरु कृपा एक सुखद यात्रा निर्माण से निर्वाण गुरु नाम तो लक्ष पूर्ण है इंसा में  भगवान ! गुरु कृपा एक गंग है जीवन का आधार संस्कार .नीति .और नेह का अथाह भरा भंडार ! कंकर को शंकर करें कंकर को महादेव महादेव त्री नेत्र करें गुरु वाणी में गुंजित वेद ! गुरु बिना ना सदगति ना जनम सुकारथ जाय सच्चा गुरु जो मिल गया नर नारायण हुई जाय ! डा .इन्दिरा  .✍

आहट

आमद .... कोई आमद नही होती ना साँकल ही बजती है शायद आ रहा कोई एक आहट सी  होती है ! कहीं नगमा बजे कोई कहीं कोई गीत लहराये नहीं गाता कहीं कोई  मगर सरगम सी बजती है ! सूना हुआ आंगन हुए जज्बात सूने से हवा सहमी सी बहती है हिले मन पात खड्के से ! एक सन्नाटा सा पसरा है लब खामोश है कब से खामोशी का आलम है दिल धड़के है जोरों से ! कोई आ जाये ऐसे मैं जरा आहट ही हो जाये आये जज्बात काबू ज़रा राहत सी हो जाये ! डा .इन्दिरा .✍

प्रकृति / मनुज

प्रकृति / मनुज ... प्रातः काल उषा की लाली शरमाई दुल्हन जैसी नीला अम्बर ओढ़ के निकली ज्यू पी घर प्रथम कदम रखती ! ऋषि कश्यप पुत्र संग ब्याही हुई सिन्दूरी मुस्काई शबनम के मोती बिखेरती पावन धरा उतर आई ! स्वागत गीत खग वृंद सुनाते तोरण द्वार से पात सजे पुहुप विहंगम राह बनाते कुलवधू सा सम्मान करें ! नित का आना नित का जाना नित यही व्यवहार चले तनि भी गाफिल कोई नहीं है सदियों से क्रम यही चले ! प्रकृति कभी कुछ नहीं भूलती सदा सदाचार का भान रहे मनुज बना क्यों असुर घिनौना विद्रूप सा व्यवहार करें ! सभ्यता संस्कृति ताक पे रख दी व्यवहार कुशलता भूल गये भागीरथी भी मैली करदी कर्म  - कुकर्म ना भेद करें ! डा .इन्दिरा .✍

ओम नमः शिवाय

ओम नमः शिवाय ... तिस तिस तृष्णा ना मिटे तड़प तड़प रही जाय जिस दिन तृष्णा मिट गई वा दिन नमः शिवाय ! वा दिन नमः शिवाय मन चिंता मुक्त हुई जाय जल सा शिव शंकर चढ़े जीवन अमि कलश हुई जाय ! डा इन्दिरा  .✍

वीर बहुटी .वीरँग्नाये सिंध के राजा दाहिर की पत्नियां और पुत्रियाँ

वीर बहुटी सिंध के राजा दाहिर की पत्नियाँ और पुत्रियाँ सिंध के राजा दाहिर की बेटियों और पत्नियों ने भी देश रक्षा हित अपनी जान देदी पर शत्रु के सामने झुकना स्वीकार नहीं किया ! सिंध के सभी राजाओं की कहानियां बहुत मार्मिक और दुखद ही  रही है ! राजा दाहिर अकेले ही अरब और ईरान के दरिंदों से लड़ते रहे ! उनका साथ किसी ने नहीं दिया ! उल्टा उनसे गद्दारी की ! दाहिर सिंध के राजा चय के पुत्र थे वे कश्मीरी ब्राम्हण थे ! उनके राजा के कोई पुत्र नहीं था अतः उनके राजा ने चय को ही अपना उतराधिकारी बना अपनी पुत्री से उसका विवाह किया ! उनसे ही दाहिर पैदा हुए जो सन 679 में राजा बने ! सिंध का समुद्री मार्ग पूरी विश्व के व्यापार के लिये खुला था ! सभी अरब .इराक ईरान से आने वाले जहाज देवल बंदरगाह होते हुए अन्य देशों को जाते थे ! एक बार जहाज मैं सवार अरब व्यापारियों  के सुरक्षा कर्मियों ने ने बेवजह देवल शहर पर हमला कर बच्चों और औरतों को उठा कर लेगये  ! देवल के सूबेदार को सूचना मिली उसनै अपने दस्ते सहित जहाज पर आक्रमण किया और अपहत किये गये औरतों और बच्चों को छुड़वा लिया ! अरबी जान बचा कर अपने जहाज को लेकर भाग गये

यलगार करके देख

यलगार करके देख ... फिजाये क्यूँ बदली है हवा का रुख क्यों धीमा है कलम तलवार सी कर ले जरा  यलगार करके देख ! आज भी ताब  है तुझमें मोती सी आभ है तुझमें खम ठोंक आगे बढ़ अभी बारूद है तुझमें ! कभी पलटे नहीं पीछे तेरी फितरत रही ये तो जरा सी आंधी क्या आई कदम पीछे लगे रखने ! जरा ठहरो हिय झांको समंदर ले रहा लहरें सिपाही हो कलम के तुम मसि  सैलाब बहने दो ! डा .इन्दिरा .✍

झूला / सावन

झूला / सावन ... अब की बरस भेज भय्या को बाबुल सावन में लीजो बुलाय रे लोटोगी जब  मेरे बचपन की सखियाँ दीजो संदेसा भिजाय रे ..... अम्बुआ तले फिर से झूले पड़ेंगे रिमझिम पड़ेगी फुहारें बरसेगी  फिर तेरे अंगना में बाबुल सावन की ठंडी बौछारें तड़पे रे मन मोरा कसके रे जियरा मैके की जब याद आय रे ... बैरन जवानी ने छीने खिलौने और मेरी गुडिया चुराई बाबुल में तो तेरे नाज़ों की पाली फिर क्यों हुई में पराई बीते रे युग कोई चिठिया ना पाती ना कोई नैहर से आय रे ..... आम की बगिया में ऊंचा हिंडोला फर फर उड़े जब चुनरिया ऊंची पिंग बढ़ा नभ छूना रह रह सताये सब बतियां हाय तड्प रह जाये रे हिंवडा हिय में हूक उठाय रे ..... डा इन्दिरा  ✍

जीवन / दन्त कथा

जीवन / दन्त  कथा .... जीवन एक दन्त  कथा सा जाने कितने सोपान लिये एक अध्याय खत्म नहीं होता दूजा अध्याय खड़ा मिले ! दोधारी तलवार पे जैसे चलना है चलना पड़ता चाहे जितने घायल हो कदमों को रखना पड़ता ! कंटको का जाल बिछा है समय शिकारी घात लिये श्वासों का मेला सा जीवन हाट सजे तक चला चले ! डा इन्दिरा ✍

पाती 💌

पाती ..💌 काम काज छोड़ कर उनको पाती लिखने बैठ गई पहले हंसी आ गई मुख पर बिसरे दिनन की याद भई ! कितना सोच रखा था मन में ये लिखना वो लिखना है लिखने बैठी भूल गई सब तुमको क्या क्या कहना  है ! यहाँ सभी कुशल है सुनो जी अपनी कुशलता की कहना चिट्ठी पत्री बहुत दिनों से क्यों ना भेजी कारण लिखना ! कब आओगे ये भी लिखना कब मिलने का दिन आये कब आँसू सुखेगे  मेरे कजरा आँखों में  टिक पाये ! साड़ी नहीं चाहिये मुझको ना गहने हीरे मोती सूती सी साड़ी भी मुझको रेशम जैसा सुख देती ! साज शृंगार सभी अधूरा तुम बिन्दियाँ से आ जाओ बालों मैं तेल फुलेल लगा कर कंघी नैक करा जाओ ! पायल बिछिया रूठी रूठी दोनों कम कम बजती है चूड़ी की खनक गूंगी है नैक जरा खनका जाओ ! भरी दुपहरिया हुई जिंदगी बिन आहट की रातें है मन घट रीता रीता सा है गगरी नैक भरा जाओ ! डा इन्दिरा  .✍

तुम बोलो

तुम बोलो ... में चुप हूँ आज तुम बोलो जर्रा जर्रा मन पट खोलो !  बहते बहते मेरे घट में सहज सरस रस सा घोलो ! प्यार ...मनुहार या वीतराग कुछ जो चाहो सो गाओ जीवन को पुनि राग बनाओ बूँद बूँद कर  जीलो ! ! डा इन्दिरा .✍

सवाल / मलाल

सवाल / मलाल ... जिंदगी पर सवाल क्या कीजे हर तरफ है मलाल क्या कीजे ! जिसे समझते रहे वो गुरूर मेरा हमारा था मिजाज क्या कीजे ! वो गुरूर सर पे उठाये चले गये ऐसा नहीं अपना ख्याल क्या कीजे ! जरा सी वादे हवा से हिल जाते है हम है तूफाने वफा तो क्या कीजे ! दो कदम साथ चले चल के रुक गये ना रहा ताउम्र सफर क्या कीजे ! हर तरफ रेत रेत के से इरादे हमारी चट्टानें वफा  तो क्या कीजे ! इरादतन वो भी नहीं होंगे ऐसे हमको ये ही है गुमां तो क्या कीजे ! डा .इन्दिरा .✍

भोर तपस्वी

भोर तपस्वी .... शान्त भोर भी एक तपस्वनी जैसी पावन लगती है रात रात भर करें तपस्या प्रात: काल ही उठती है ! जल थल सबको वरद हस्त से फिर वरदान लुटाती है देय उजाला अग्नि पुंज को उज्वल दिवस बनाती है ! जल , पवन और धरा विनम्र से शान्त भाव सब ग्रहण करें कश्यप पुत्र को पाकर सन्मुख भर भर अंजुरी आचमन करें ! कर्म भाव दिनकर को देकर रथ आरूढ़ कराती है तिल भर अधिक ना तिल भर कम ये गति ना टूटने पाती है ! डा इन्दिरा .✍

वीर बहुटी वीरांगना नाना साहब की पुत्री मैना

वीर बहुटी नाना साहब पुत्री वीरांगना मैना ✊         सन 1857 के विद्रोही नेता धूधू पंत नाना साहब कानपुर विद्रोह मैं असफल होने के बाद भागने लगे ! पर जल्दी जल्दी में अपनी किशोर पुत्री मैना को ले जा ना सके ! वो पिता के साथ बिठूर के महल मैं ही रहती थी ! अंग्रेजों ने बड़ी निष्ठुरता से महल के साथ राजकुमारी मैना को जिंदा जला दिया ! कानपुर के भीषण  हत्या काण्ड के बाद अंग्रेजों के सैनिक नाना साहब के महल जो बिठूर मैं था उसे लूटने और ध्वस्त करने बिठूर आये ! आधे से अधिक सम्पत्ति पहले ही लूट चुकी थी बची हुई सम्पत्ति को अपने कब्जे मैं कर महल को ध्वस्त करना चाहा .सैनिकों ने महल को ध्वस्त करने के लिये जैसे ही तोपें लगाई तभी महल के बरामदे मैं से एक अत्यंत सुंदर बालिका आकर  खड़ी हो गई ! अंग्रेज सेनापति आश्चर्य मैं भर गया क्योंकि महल लूटते वक्त ये बालिका नजर नहीं आई थी ! उस बालिका ने अंग्रेज सेनापति को किले पर गोली बरसाने से मना किया ! उसका करुणा भरा मुख और अल्प अवस्था को देख सेनापति हे को को भी उस पर दया आ गई ! सेनापति ने पूछा क्या चहती हो ..बालिका ने शुद्द अंग्रेजी में जवाब दिया ......क्या आप कृपा कर इ