पाती ..💌
काम काज छोड़ कर उनको
पाती लिखने बैठ गई
पहले हंसी आ गई मुख पर
बिसरे दिनन की याद भई !
कितना सोच रखा था मन में
ये लिखना वो लिखना है
लिखने बैठी भूल गई सब
तुमको क्या क्या कहना है !
यहाँ सभी कुशल है सुनो जी
अपनी कुशलता की कहना
चिट्ठी पत्री बहुत दिनों से
क्यों ना भेजी कारण लिखना !
कब आओगे ये भी लिखना
कब मिलने का दिन आये
कब आँसू सुखेगे मेरे
कजरा आँखों में टिक पाये !
साड़ी नहीं चाहिये मुझको
ना गहने हीरे मोती
सूती सी साड़ी भी मुझको
रेशम जैसा सुख देती !
साज शृंगार सभी अधूरा
तुम बिन्दियाँ से आ जाओ
बालों मैं तेल फुलेल लगा कर
कंघी नैक करा जाओ !
पायल बिछिया रूठी रूठी
दोनों कम कम बजती है
चूड़ी की खनक गूंगी है
नैक जरा खनका जाओ !
भरी दुपहरिया हुई जिंदगी
बिन आहट की रातें है
मन घट रीता रीता सा है
गगरी नैक भरा जाओ !
डा इन्दिरा .✍
सच कहा पिया बिन संसार अधूरा है।
ReplyDeleteएक वक़्त था जब पाती के इंतजार में निगाहें रास्ते से नही हटती थी।
एक वक़्त है जब लिखने का समय और जरूरत दोनों खत्म हो चुके हैं।
सुन्दर रचना।
अब तो न पाती है
न पाती में छुपे एहसास
न प्यार की वो खुशबू
न आंसुओं के छाप
स्नेहिल आभार
Deleteवाह बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना
ReplyDeleteलेखन सार्थक हुआ ...
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 19 जुलाई 2018 को प्रकाशनार्थ 1098 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
नमस्कार ....अतुल्य आभार
Deleteआ .रवींद्र जी
बहुत सुंदर "पाती" इंदिरा जी, इनका स्थान कोई नही ले सकता।
ReplyDeleteआपकी सराहना मन प्रफुल्लित कर गई ....नमन आ .दीपाली जी
Deleteवाह!!प्रिय सखी इन्द्रा जी ,बहुत ही खूबसूरत भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteमार्मिक हृदयस्पर्शी रचना
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