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Showing posts from November, 2018

भस्म करो या तृप्त करो

भस्म करो या तृप्त करो .... आंखों में भर ओज का रौरव उठ भी जाओ सोते क्यों हो शिवा प्रताप के तुम हो वंशज हैरानी सी बोते क्यों हो ! जिन आंखों में ज्वाला धधके बांह उन्हीँ की रह रह फडके श...

शजर ( वृक्ष )

शजर  ( वृक्ष ) .... नग्न शजर चुपचाप खड़ा है पात पात कर झरता है जैसे बच्चे एक एक कर घर को छोड़ निकलता है ! मनई धरा निर्जला हो गई कंकरीट से भाव हुए पुष्प वहां कैसे हो सुरभित जहाँ पाथर से  ज...

बंजर सा मन

बंजर सा मन ..... जीवन के इस उहां पोह में मन बंजर हो जाये दरक गई सुखी धरती लफ्ज ना उगने पाये ! सायं सायं भावों का अंधड़ यादों को गर्माये पिघल पिघल कर गिरे धरा पर मन पिघला सा जाये ! अतृप...

आहट

आहट ... दबी दबी सी आहट होती थम थम कर रुक जाती है जैसे कोई धीमे धीमे सोच सोच कर चलता है ! कुछ बोले या चुप रह जाये उलझे से जज्बात हुए कहते कहते रुक जाता है रुकते रुकते कहता है ! लफ्जों ...

पहचान जरा

पहचान जरा ... संघर्ष मान कर चुप रह जाना ये तो तेरा काम नहीं बार बार प्रहार करो जब तक हो ना जाये सही ! तू नारी है तू पूर्णा है अपनी शक्ति को पहचान कोई बांध सका क्या तुझको तू प्रचण्ड ...

तिश्नगी

तिश्नगी .. हृदय भाव उद्धवेलित से है निर्झर मन जल धार बहे उफन उफन दरिया में मिलते सागर तक अविराम बहे ! उतन्ग मन और घनी वितृष्णा कल कल कर बहती नदियां हिम खण्ड से शुष्क भाव रुको नि...

सीख लिया

पंख नोचते है शुभ चिंतक फिर भी उड़ना सीख लिया मन में अपने आह दवा कर वाह से जुड़ना सीख लिया ! कर विहीन कर पतवारौ से नाविक थाम चला नय्या साहस का चप्पू  लेकर सागर से लड़ना सीख लिया ! मे...

माँ का कर्ज

माँ का कर्ज ..... जिस ममता के खातिर श्यामा बार बार अवतार धरो मात यशोदा से भी पहले जन्म भूमि का उद्धार करो ! आओ पुनि  धरा पे कान्हा  माँ का कर्ज चुका देना अरिहँत अरिहँता बन कर अरिय...

हसरत

हसरत ... सुरमई सी शाम हो गई खामोशी भी है पसरी सन्नाटे को चीर के चीखें ऐसी हसरत होती है ! सहमी सी खमोश फिजा जाने किसकी राह तके कोई उठ कर चला गया या आने की बाट तके ! मन बहुत अशांत सा रह...

हे मधुसूदन

हे सखे  .... हे योगेश्वर हे जगदीश्वर जग के पालन हार सखे भाग्य विधाता जग के दाता तुम सर्वज्ञ शक्ति मान सखे ! भाग्य अभियंता कर्म प्रणयंता तुम हो अन्तरयामी  सखे हे मधुसूदन हे बनव...

आधी दुनियाँ

आधी दुनियाँ ... आधी दुनियाँ कहलाने वाली छद्म भाव से छली गई ! भावुकता का दोहन करके कोमल हिय में सैध  करी ! नेह बना पाँव की बेडी हाथ रिश्तो से बंधे हुए ! नयन सदा भीगे ही रहते घर आंगन ...

गिद्ध द्रष्टि

गिद्ध द्रष्टि ... गिद्ध द्रष्टि व्याप्त हो गई हर नर के मन आंगन में नारी महज भोग्या रह गई हर कुदृष्टि की नजरों में ! पिता भाई मामा चाचा रिश्ते आज समाप्त हुए नर नारी का एक ही रिश्त...

छठ पूजा

छठ पूजा ... दिनकर तुम साक्षी रहना मेरे व्रत तप अर्चन के परिजन प्रियजन सब सुख पाये मेरे इस जल अर्पण से ! नहीं जानती शब्द अलंकृत नहीं जानती व्रत पूजा सरल भाव स्वीकार करो हे सवितु मेरी पूजा ! रूखा सूखा जो भी बनाया सहर्ष भाव प्रभु अर्पण है टूटे फूटे से शब्दों से भक्ति भाव प्रभु वंदन है ! में हूँ अकिंचन माँ छठ पूजा पूजा विधि कछु ना जानू अश्रु जल कण सींच सींच कर पद पंकज आज पखारू ! मन तन की तू जानन हारी तुझको क्या कह में मांगू शुभ लाभ की दाता मय्या इतना ही बस में जानू ! घाट किनारे खड़ी निर्जला हाथ जोड़ नत मस्तक है पूजा मेरी स्वीकार करो माँ दास्य भाव हिय अर्पण है ! डा इन्दिरा गुप्ता स्व रचित

शरद ऋतु

शरद ऋतु ... आई शरद ऋतु इठलाती शीतल बयार सी पवन बहे रीते मेघ अठखेली करते चपल पवन संग होड़ करें ! तारक गण भी नील गगन में मुक्त भाव विचरण करते धरा सजी पीली सरसों से दिनकर जैसा भरम धरे ! ...

संतति

संतति ... मनु 🌸 माँ क्यारी का  केसर है  तू या मात्रत्व की उठती उमंग पिता का पुरुषार्थ भाव या उसका सम्बल सा  स्कन्ध ! पूर्व जन्म पुण्य प्रगटे जो तू आँचल में आया क्या कह करूं तुझे ...

कान्हा का संदेश

कान्हा का संदेश ... उद्धव तुम तो जानो मेरे हिय की तुम तो मोकू जान गये सब वैसो ही कहियो उद्धव जो जो तुमको भान रहे ! इत देखो वसुदेव देवकी  मोकू  अपनों जायो कहते उत सब यशोदा और नंद ब...

नारी और सौंदर्य

नारी और सौंदर्य .. वातायन से झांक रहे हो वो भी उघडी नारी को रही संस्कृति कभी हमारी ना देखो पर नारी को ! पूरब में पाश्चात्य सभ्यता की करते हो हठ धर्मी यहां नारी को पूजा जाता माना...