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हे मधुसूदन

हे सखे  ....

हे योगेश्वर हे जगदीश्वर
जग के पालन हार सखे
भाग्य विधाता जग के दाता
तुम सर्वज्ञ शक्ति मान सखे !

भाग्य अभियंता कर्म प्रणयंता
तुम हो अन्तरयामी  सखे
हे मधुसूदन हे बनवारी
जगत पिता तुम नाथ सखे !

हे नरनागर हे करुणाकर
तुम  जीवन आधार सखे
दीनदयाला हृदय विशाला
तुम प्रतिपालक सदा सखे !

नाथ विशाल रूप तुम प्रगटे
में नर हूँ नादान सखे
कोमल हृदय भीरू भई छाती
विशाल रूप लख बाल सखे !

बांह पकड़ निकट बैठा लो
सर पर रखना तुम हाथ सखे
में नादान कछु विवेक नहीं
तुम ज्ञान नाद अविराम सखे !

हाथ पकड़ राह दिखला दो
पंथ नहीं कुछ सूझे सखे
अंधकार चहुंओर हुआ है
तुम प्रकाश  परिपूर्ण सखे !

डा इन्दिरा गुप्ता ✍
स्व रचित

Comments

  1. वाह भक्ति भावना से परिपूर्ण अप्रतिम काव्य मीता ।

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