झूला / सावन ...
अब की बरस भेज भय्या को बाबुल
सावन में लीजो बुलाय रे
लोटोगी जब मेरे बचपन की सखियाँ
दीजो संदेसा भिजाय रे .....
अम्बुआ तले फिर से झूले पड़ेंगे
रिमझिम पड़ेगी फुहारें
बरसेगी फिर तेरे अंगना में बाबुल
सावन की ठंडी बौछारें
तड़पे रे मन मोरा कसके रे जियरा
मैके की जब याद आय रे ...
बैरन जवानी ने छीने खिलौने
और मेरी गुडिया चुराई
बाबुल में तो तेरे नाज़ों की पाली
फिर क्यों हुई में पराई
बीते रे युग कोई चिठिया ना पाती
ना कोई नैहर से आय रे .....
आम की बगिया में ऊंचा हिंडोला
फर फर उड़े जब चुनरिया
ऊंची पिंग बढ़ा नभ छूना
रह रह सताये सब बतियां
हाय तड्प रह जाये रे हिंवडा
हिय में हूक उठाय रे .....
डा इन्दिरा ✍
सुन्दर रचना!!!!
ReplyDelete🙏अतुल्य आभार आपकी प्रतिक्रिया का विश्व मोहन जी
Deleteसुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा आपने .. मन में गहरे उतरते भाव
सदा की तरह उत्साह वर्धन करती प्रति क्रिया !
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteप्रिय इंदिरा बहन शेयर करने के लिए शुक्रिया | बंदिनी मेरी प्रिय फिल्म है और शैलेन्द्र जीकी ये अमर रचना अपने आप में कालजयी और विलक्ष्ण है | सादर आभार |
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