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श्रृंगार

श्रृंगार 
संगमरमर सा शफ्फाक और मरमरी बदन 
कंचन, कनक, कमीनी , या भीगा हुआ कमल ॥ 

झूल्फे झटक के बूंदें कुछ इस तरह गिरी 
शबनम गिरी हो अर्श से या मोती की कोई फसल ॥ 

कांधे पे उनके झूलती वो काली घनी लटें 
लगता था जैसे महक रहा कहीं कोई संदल ॥ 

गज गामिनी सी चाल है पायल बजे कमाल 
लफ्जों मैं ढल के लिख रहा जैसे कोई ग़जल ॥ 

डॉ़ इन्दिरा  गुप्ता  यथार्थ 

Comments

  1. आदरणीय इंदिरा जी, आपके ब्लॉग पर किसी टिप्पणी के जरिये ही पहुँच पाती हूँ। कृपया आप ब्लॉग की थीम बदलें और फॉलो का विकल्प लगाएं जिससे सब लोग आपको फॉलो कर सकें और नियमित पढ़ सकें। सस्नेह प्रणाम और शुभकामनाएं🙏🙏

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  2. सुन्दर श्रृंगारित रचना। स्नेह वंदन

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