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मानवता

मानवता ....
चौवनवां कदम

पढ़ने और लिखने तक ही
मानवता का अहसास जरूरी हैं
वरना कब समझे हैं हम
की माँ बाप जरूरी हैं ॥
टेक फॉर ग्रांटेड लेना तो
अब हम सब की रीत हुई
माँ बाप की सिर्फ जरूरत
बेबी सीटर तक ही रही !
वस्तु सरीखे रिश्ते हो गये
मोल तोल के  हुए विचार
काम के हैं तो घर मैं रखो
वरना काहे का व्यवहार ॥
पाल पोस कर बढ़ा किया
ये तो फर्ज निभाया हैं
एहसान क्या किया हैं उन पर
मानवता का मोल चुकाया हैं !
पर भूल गये ये परिपाटी हैं
यू ही खतम नही होती
आगे तक ले जाने की
सबकी ड्यूटी भी बनती !
काश .....
काश समझ पाते ड्यूटी को
तो ना ये गड़बड़ होती
जर जर होती मानवता
बैठ सड़क पर ना रोती !
कर्म कुकर्म सभी हैं  तुझमे
एक दिन आगे आयेगा
तेरा पुत्र ही  ठोकर देगा तब
मानवता का मोल समझ आ आयेगा !

डॉ इन्दिरा गुप्ता
स्व रचित

Comments

  1. कटु सत्य आदरणीया दीदी जी
    मर्मस्पर्शी रचना
    वास्तव में आज मानवता बस पढ़ने लिखने तक सीमित है मानवता पर अमल करना तो शायद ही कुछ लोगों को आता है
    उम्दा रचना सादर नमन

    ReplyDelete

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