वो जा रहा हैं ..
वो जा रहा हैं
हमसे बिछड़ कर
जमी रो पड़ी
आसमां को तक कर
कैसी थी चाहत
कैसी कशिश थी
पलकें थी गीली
सुखी हँसी थी
दिल कह रहा था
मुड़ के वो देखे
कदम कह रहे थे
कोई हमको टोके
खरामा खरामां
दूर हो गया वो
ना मैने ही रोका
ना वोही रुका था
दूर होते होते
दूर हो गया था
इश्क़े रवायत
बड़ी ना समझ हैं
क्या चाहती हैं
ना वो जानती हैं
खामोशी का आलम
आहें कसक हैं
होती हैं आहट
लो वो जा रहा हैं ॥ ॥
डॉ इन्दिरा गुप्ता
स्व रचित
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteस्नेहिल आभार अनीता जी
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 17 जनवरी 2019 को प्रकाशनार्थ 1280 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
अतुल्य आभार रवींद्र जी ..आपके चयन ने लेखनी को प्रवाह दे दिया ! 🙏🙏
ReplyDeleteबेहतरीन, भावपूर्ण, एवं लाजवाब प्रस्तुति...।
ReplyDeleteदिल कह रहा था
ReplyDeleteमुड़ के वो देखे
कदम कह रहे थे
कोई हमको टोके
बहुत सुंदर भाव , प्रणाम
कैफ़ी आज़मी का लिखा ख़ूबसूरत नग्मा याद आ गया -
ReplyDeleteमगर उसने रोका
न उसने मनाया
न दामन ही पकड़ा
न मुझको बिठाया
न आवाज़ ही दी
न वापस बुलाया
मैं आहिस्ता आहिस्ता बढ़ता ही आया
यहाँ तक के उससे जुदा हो गया मैं
हृदयस्पर्शी रचना ...मन तरल हो गया।
ReplyDeleteश्वेता जी मन की तरलता मन तक पहुची ....सादर आभार
ReplyDeleteआभार गोपेश जी तुलनात्मक काव्य बेहतरीन .....👌👌👌👌👌
ReplyDeleteजुदाई के ये एहसास ... हिते हिते जुदा हो जाने का एहसास भी कमाल है ...
ReplyDeleteभावपूर्ण, एवं लाजवाब प्रस्तुति...।
ReplyDeleteउफ्फ मन की ये बेबसी
ReplyDeleteना रुकते बने
ना उसे रोक सकी
वाह आदरणीया दीदी जी बहुत सुंदर रचना
सादर नमन शुभ मध्यांतर