पिता बेटी का नाता ...
सघन वृक्ष की घनी छाँव सा
सशक्त दृढ़ आभास
एक अटल विश्वास सरीखा
मन का सुदृढ़ पड़ाव !
सम्पूर्ण काव्य रस छंद अलंकृत
नव सृजन सा भाव
एक बलिष्ठ वलय बांह का
सर पर सशक्त सा भाव !
पिता एक संगीत भरा स्वर
सरगम से परिपूर्ण
एक ख्याल मधु एस के जैसा
सरस और उपयुक्त !
कर्तव्य भाव और कर्तव्य निष्ठता
कर्म भाव का दिव्य स्वरूप
तृप्त प्यास आकंठ गले लग
परीपुर्ब और सम्पूर्ण !
मेले के झूले की पैग सा
उछन्द और उत्साह
स्कूल का पूरा बस्ता
जीवन की परिपूर्ण किताब !
माता के उज्वल ललाट की
लाल गोल सी आभ
खुली बांहे नेह सशक्त सी
मन अवलम्बन की चाह !
पिता नेह सुस्वादु व्यंजन
तृप्त आचमन भाव
पिता से नाता कमल नाल सा
जिसका ना कोई पर्याय ॥
डा इन्दिरा गुप्ता
स्व रचित
वाह बहुत सुन्दर मीता अप्रतिम अद्भुत भाव रचना।
ReplyDelete