नन्ही दुआ 🙏
नन्ही दुआ फर्श से अर्श तक 
कह रही प्रभु मेरी सुनन
 आओ प्रभु फिर बनो नरायण
हर द्रौपदी का दुख हरना ! 
हम अजन्मे मारे जा रहे 
गर्भ ग्रह मैं ही शक्ति दो 
अपने वजूद के खातिर लड  सके 
ऐसी कोई युक्ति दो ! 
वैसे तो मेरा काम नहीं ये 
तेरा काम कहाता है 
पालक ही जब मुँह मोड़े तो 
पालित पर कहर बरसता है ! 
त्राही त्राही  हर रोज पुकारे 
त्राही त्राही का नाद गूंजे 
हे प्रलयंकर हे करुणाकर 
 अब तो हम पर रहम करो ! 
कैसी दोगली नीति इनकी 
बेटी नहीं पर बहु चाहिये 
वो भी सिर्फ जने ही बेटे 
ऐसी एक मशीन चहिये ! 
भूल गये विस्मित हूँ में भी 
क्यों पुरुष समझ नहीं पाता 
नारी के घटते अस्तित्व मैं 
उसका ही होगा घाटा ! 
मातृ शक्ति के बिना पुरुषों का 
जन्म कहाँ से होगा 
कन्या भ्रूण के साथ हनन 
पुरुष भ्रूण का भी होगा ! 
सोच नहीं पा रहे अभिमानी 
गर पुरुष वर्ग ही रह जायेगा 
मातृ वर्ग के बिना नपुँसक 
संतति सुख से वंचित होगा ! 
प्रजनन भाव नहीं होगा तो 
उर्वरा कहाँ से आयेगी 
बंजर होगा पूरा समाज 
जीवन पर पूर्णविराम लगायेगी ! 
डा इन्दिरा ✍
 
अद्भुत इंदिरा जी पूरी व्यथा शब्दों में पिरो दी है आपने मन अश्रुपूर्ण हो चुका..
ReplyDeleteआपके दिल तक पहुंची लेखन सार्थक हुआ धन्यवाद
Deleteबहुत सुन्दर भाव ....बेहद खूबसूरत रचना लिखी आप ने
ReplyDeleteअति आभार आपकी नजर का नेह है नीतू सखी !
Deleteउत्तम लेखन की कोशिश पुरजोर रहती है 🙏
प्रिय इंदिरा जी - नन्ही बालिका का आर्त स्वर अत्यंत मर्मस्पर्शी है | बहरा और कुंठित समाज इस स्वर को कब सुन पा रहा है |
ReplyDeleteसचमुच बेटी नहीं बहु चाहिए
वो भी सिर्फ जने ही बेटे
ऐसी एक मशीन चहिये ! -- बिलकुल सही लिखा आपने | पढ़कर कई जाने पहचाने दृश्य शब्दों में नजर आये | बेहतरीन प्रशन्सनीय सृजन | सस्नेह ----
सुप्रभात रेनू जी 🙏
Deleteसदा की तरह आपकी प्रतिक्रिया काव्य व्याख्या करती हुई ! भावों मैं गहरे से उतरती हुई !
ऐसे काव्य मेरे क्लिनिक के अनुभवों से कलम पर उतरते है ! कई बार कोई वाक्या इतनी पीड़ा दे जाता है मन विचलित सा हो जाता है और लेखन बह निकलता है !
आभार अपने पीड़ा को महसूस किया !
आभार लोकेश जी
ReplyDeleteवाह दीदी वाह अब तो कम से कम ईश्वर हर स्त्री की फरियाद सुने
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी बेहद उम्दा रचना
ReplyDeleteनन्ही कली से
रौंदी बगिया का हाल सुनवाया
उजड़े चमन का दर्द सुना
उस माली को भी तुमने रूलवाया
👌👌